महर्षि व्यास जी की काव्य रचना


इन्द्रियों की माया विद्वानों को भी नचाती है। एक दिन महर्षि व्यास काव्य रचना कर रहे थे। उन्होंने ने लिखा- बलवान्-इन्द्रिय-ग्रामो,विद्वांसम-अपि कर्षति-

(इन्द्रियां बलवान हैं,विद्वान् ज्ञानी व्यक्ति को भी खींच ले जाती है।)

देयानि स्ववशे पुंसा स्वेन्द्रियाण्याखिलानि वै।
असंयतानि खायन्तीन्द्रियाण्येतानि स्वामिनम्॥

अर्थ- अपनी इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए।असंयत
इन्द्रियाँ अपने स्वामी को वश में रखना चाहिए।अब पढ़ें गुरु उपदेश

जलना चाहते हैं या जगना चाहते हैं?

अवधूत गीता से श्री दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कहानी से आपको अवगत कराया था लेकिन रोचक बात ये थी कि उनके गुरुओं की शृंखला में सूरज, चाँद, कबूतर, अजगर सब शामिल थे।

उसी शृंखला में उनके दो गुरु ऐसे हैं जिनसे हम बहुत बार मिले हैं लेकिन उनसे सीखने का ख़्याल शायद मन में कभी नहीं आया होगा। हम किनकी बात कर रहे हैं वो है?
#पतंगा और #भौंरा।

पतंगे से उन्होंने क्या सीखा?जैसे पतंगा रूप पर मोहित होकर आग में कूद पड़ता है और जल मरता है, वैसे ही कामी पुरुष जब स्त्री को देखता है तो उसके हाव-भाव पर लट्टु हो जाता है और घोर अन्धकार में गिरकर अपना सत्यानाश कर लेता है।

जो मूढ़ कामिनी-कंचन,गहने कपड़ों में फँसा हुआ है और जो उपभोग के लिए ही लालायित है, वह विवेक खोकर पतंगे के समान नष्ट हो जाता है। भौंरे से उन्होंने क्या सीखा?

जिस प्रकार भौंरा विभिन्न फूलों से चाहे वे छोटे हों या बड़े उनका रस संग्रह करता है, वैसे ही बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि छोटे-बड़े सभी शास्त्रों से उनका सार (रस) निचोड़ ले।

अब आप बताइए,आप कैसा
जीवन जीना चाहते हैं।

जलना चाहते हैं या जगना चाहते हैं?

अपने रूप से आपको आकर्षित करने की कोशिश तो पूरी दुनिया कर ही रही है। आपके लिए वेदांत के फूल निरंतर लेकर आ रहे हैं, हमने पूरा प्रयास किया है कि ऐसा कोई भी कारण ना हो जिसके वजह से आप इन विशेष वेदांत ग्रंथों से वंचित रह जाएँ।

|| जय गुरुदेव प्रणाम आपको ||

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