संसार में रहने की विद्या

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इसका कारण यह है कि सबका पालन-पोषण करना, सबकी रक्षा करना और सबको सुख देना इनसे ममता दूर होती है | *सेवा करने से अभिमान दूर होता है | यह बड़े ऊँचे दर्जे की बात कही गयी है | अगर यह व्यवहार में आ जाय तो काम बन जाय | काम-धन्धा ठीक करें | चीजों को उदारता से बरतें | ओरों को देवें | दो का आदर विशेषता से होता है | एक तो जो उपकार करते हैं और दूसरे जो बड़े-बूढ़े पूजनीय होते हैं | बड़े-बूढ़े हैं, उनका आदर करें, आज्ञा मानें | जो दीन हैं, रोगी हैं, अभावग्रस्त हैं, उनकी सेवा करें | दीन-दु:खियों में भगवान् रहते हैं | यदि उनकी सेवा की जाय तो आपकी सेवा स्वीकार करने के लिये भगवान् तैयार है | दीन-दु:खियों से घृणा मत करो | द्वेष मत करो | ईर्ष्या मत करो | अपने में अभिमान मत लाओ कि हम बड़े हैं | वास्तव में आपमें जो बडप्पन है, यह बडप्पन उन छोटे आदमियों का दिया हुआ है |

इसलिये उन गरीबों को देने से धन का सदुपयोग होता है | धन होते हुए भी धनवता का सुख देने वाले गरीब हैं | जिनके दर्शन-मात्र से आपको प्रसन्नता होती है, उनकी सेवा करना आपका कर्तव्य है | बड़े-बूढों ने आपका पालन किया है, रक्षा की है, विद्या दी है, बुध्दि दी है, सम्पति दी है | उनकी सेवा करना भी आपका कर्तव्य है | अत: उनकी सेवा करो | उन्हें सुख पहुँचाओ, इससे जो हमारा पुराना ऋण है, वह उतर तो नहीं सकता, पर माफ़ हो जायगा |

सेवा से अभिमान नहीं होगा और संसार में रहने की विद्या आ जायगी | ऐसे प्रेम और सेवा होगी तो संसार के लोग चाहेंगे | जो सेवा करने वाले हैं उनको सब लोग चाहते हैं |

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