‘गुडाकेश’ अर्जुन

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एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन घूम रहे थे। मार्ग में देखा की एक स्त्री आँखे बंद करके ध्यान कर रही है।
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भगवान ने अर्जुन से कहा, पार्थ, जरा देखो, ये कौन है और किसका ध्यान कर रही है ?
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अर्जुन गए और कहा की हे देवी- आप कौन है और यहाँ किसका ध्यान कर रही है?
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वो स्त्री बोली.. मेरा नाम गुडाका है। ’गुडाका’ नींद को कहते है। और मैं यहाँ भगवान श्री कृष्ण का ध्यान कर रही हूँ, मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ।
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अर्जुन बोले हे देवी- मैं गाण्डीवधारी अर्जुन हुँ। और मैं सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी हुँ।भगवन कृष्ण की तो पहले ही १६१०८ शादियां हो चुकी है। उनसे शादी करके आपको क्या सुख मिलेगा? आप मुझसे शादी करलो।
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स्त्री बोली-हे अर्जुन! आपसे शादी करके तो केवल संसार का सुख ही मिलेगा, लेकिन भगवान से शादी करके उनकी सेवा भी मिलेगी और दर्शन भी मिलेगा।
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जब अर्जुन ने सुन तो वहां से चुपचाप चला गया। और कृष्ण जी के पास जाकर बोला:- प्रभु, ये गुडाका है और आपसे शादी करना चाहती है।
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अच्छा अर्जुन तो तुमने अपनी बात नहीं चलाई?
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अर्जुन बोले की भगवन् जब आपसे ही शादी करना चाहती है तो मैं अपनी बात कैसे चलता। लेकिन ये नही कहा की मैंने तो सारे जोर लगा लिए और जब मेरी नही चली तो अंत में आपके पास आया हूँ।
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लेकिन भगवान जान गए सब। और बोले चलो मेरे साथ। दोनों गए गुडाका देवी (निंद्रा देवी) के पास।
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भगवान बोले हे देवी, आप मुझसे शादी करना चाहती है ना की आपको मेरी सेवा मिले और दर्शन मिले।
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तो आप शादी तो अर्जुन से करलो, मैं आपको वचन देता हूँ जहाँ भी मेरी कथा होगी वहां पर तुम जरूर आओगी।
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इस तरह से भगवान ने अर्जुन की शादी गुडाका से करवाई। और अर्जुन का नाम पड़ा गुडाकेश।
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अर्जुन का नाम ‘गुडाकेश’ नाम इसलिए भी पड़ा था क्योंकि उसने निद्रा पर विजय प्राप्त कर ली थी।
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भगवान श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान के समय अर्जुन को ‘गुडाकेश’ कह कर सम्बोधित किया है।
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अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
(श्रीमद्भवतगीता १०-२०॥)
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हे अर्जुन (निंद्राजीत) ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सब का आत्मा हूँ तथा सभी भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ।
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