ससुराल की पहली होली दिल्ली में सुबह पाँच बजे से ही ऋतूु सारी व्यवस्था में जी जान से लगी हुई थी।पूरे घर की सफाई कर और सजा कर दहीबड़े चटनी मालपुआ पकवान फुलौडियां आलूदम और मटर पनीर बनाकर पूरियां छानने के लिए कड़ाही में तेल डालकर गैस चूल्हा चालू कर दी।
ऋतूु को आज पटना वाले अपने घर यानि की मायके की बहुत याद आ रही थी! कैसे होली के दिन भी वह महारानी की तरह नौ बजे तक सोई रहती थी और माँ पापा भाई और बहन मिलकर घर के सारे काम निपटाती थीं और फिर चुपके चुपके पापा और भाई उसे दोनों हाथों में रंग लगाकर बिस्तर में ही उसे रंगने आ जाते थे माँ चिल्लाकर कर उसे भागने का इशारा करती। जब वह बाथरूम में दौडकर जाती तो वहाँ पहले से ही छुपी छोटी बहन रंगों की पूरी की पूरी बाल्टी उसके सर पे उड़ेल देती।
फिर सारे लोग मिलकर ऋतू के साथ खूब हंगामे कर होली खेलते।फिर मुहल्ले से उसकी सारी सहेलियां भी आ जाती।देर रात तक फगुआ गाते हुए झूमते नाचते पूआ पकवान और अन्य व्यंजनों का आनंद उठाते!!!!
” छन्न” की आवाज़ हुई जब ऋतू के आँसू गालों से होते हुए तेल गर्म हो चुके कढ़ाई में गिरे। बारह बजने को आये अब तक तो वहाँ खूब होली हो रही होगी पता नही उन्हें मेरी कमी महसूस हो रही होगी भी या नही एक बार भी फ़ोन नही आया।होली के दिन रंगो से गीले रहने वाला ऋतू का चेहरा पहली बार आज होली के दिन सिर्फ आँसुओ से गीला था।उसने मोबाइल उठाकर घर वीडियो कॉल लगाया।
कॉल उठाते ही उसने दूसरी तरफ देखा भाई बहन माँ पापा सभी बिना रंगों के सूखे से चेहरे में उदास बैठे हैं।सारे पूड़ी पकवान औऱ खाने के सामान टेबल पर रखें हैं पर किसी ने हाथ तक नही लगाया है।
ऋतू ने जबरदस्ती बनावटी अपने पुराने चुलबुलेपन वाला स्टाइल लाने की कोशिश करते हुए बोली” ये क्या अभी तक आपलोगों ने होली नही खेली और सब के सब इतने उदास क्यों हैं?मैं तो सुबह से होली की मस्ती कर रही हूँ,हालाँकि यह सफ़ेद झूठ बोलते हुए ऋतू की आवाज़ भर्रा गयी।
पापा ने डबडबाये आँखों से ऋतू को देखकर बोले “तेरे बिना यहाँ की होली बहुत सूनी सूनी है बेटा!”और फिर वो बह चले आँसुओं को छुपाते दूसरे कमरे में चले गये ।भाई ने फ़ोन लेकर काँपते होंठो से कुछ बोलना चाहा पर आवाज़ की जगह आँसू निकल पड़े।छोटी बहन माँ से लिपटी पहले ही रो रही थी।घर छोटा था लेकिन वहाँ प्यार बड़ा था।
ऋतु को जरा भी आभास न हुआ कि तभी अचानक पीछे से आकर संजीव ने उसे जकड़ लिया और पूरे चेहरे पर हो हो करते हुए रंग लगा दिया।संजीव आर्मी में कैप्टन था और ऋतू को सरप्राइज देने बिना बताये घर आया था।एक और सरप्राइज देते हुए चार घंटे बाद पटना की फ्लाइट के दो टिकट दिखाकर संजीव वही बैठकर पूरी छानने लगा और बोला तुम अपनी पहली होली ससुराल में मनाओगी तो मैं भी अपनी पहली होली ससुराल में मनाऊँगा।थोड़ी देर पहले ऋतू की आँखों में जो गम के आँसू थे वही आँसू अब खुशी में तब्दील होकर बहने लगे l