प्रभु संकीर्तन 16

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भक्त भगवान का सिमरण करते हुए मन ही मन सोचता है। मुझे अपने मन को राम नाम का पाठ पढाना है। मन को समझा राम नाम कल्याण कारक है।

यंहा जो आया है सो जाएगा। राजा रंक और फकीर। हमे प्रतिदिन याद रहे जीवन का एक दिन चला गया। एक एक दिन घटते घटते दिन बीत जाऐंगे।

एक दिन मेरी मृत्यु होगी तब मेरे जीवन का भी ऐसे ही हिसाब लगाया जाएगा मैंने सच्चे तोर पर कितना परम सत्य स्वरूप परमात्मा का चिन्तन किया है। मुझे जीतेजी यह ध्यान कर लेना चाहिए।

मै अन्तर्मन से परमात्मा को भजता हुं। या मेरा जपन जीव्हा का जपन है। मेरे जपन में घर संसार का सुख छुपा हुआ है मेरे भजन कीर्तन में मान बढ़ाई है या मेरी अन्तर हृदय  की पुकार में समर्पण भाव है ।भक्त को अपनी परिक्षा करते रहना चाहिए। यदि मन में कोई विकार भगवान श्री हरि के चरणों में नतमस्तक होकर प्रार्थना करें हे नाथ इस मन रूपी घोङे की बागडोर आपके चरणों में समर्पित है। यह मन घोङे की लगाम को आप सख्ती से पकड़ कर रखे। जय श्री राम अनीता गर्ग

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