भगवान जगन्नाथजी का रथयात्रा उत्सव
भगवान जगन्नाथजी की साल भर में बारह यात्राएं होती हैं, इनमें से रथयात्रा सारे संसार में प्रसिद्ध है । इसे
भगवान जगन्नाथजी की साल भर में बारह यात्राएं होती हैं, इनमें से रथयात्रा सारे संसार में प्रसिद्ध है । इसे
जहाँ प्रेम है, वहाँ लेनेकी इच्छा नहीं होती है। वहाँ तो सब कुछ देनेकी इच्छा होती है। भगवान्की भक्ति भगवान्के
कृष्णावतार में भगवान श्रीकृष्ण की ऐश्वर्य-लीलाओं के अनेक प्रसंग आते हैं, जिनमें भक्तों को उनकी ‘भगवत्ता’ का ज्ञान हुआ ।
सखियाँ दम्पत्ति के इस एकान्त में व्यवधान न डालने के विचार से कक्ष से चुपचाप जा चुकी थीं। रात्रि के
छीन लो राजकन्या’ -राजाओं, राजकुमारों का एक बड़ा समूह क्रोध से चिल्लाया। वे अपने धनुष चढ़ाने लगे। ‘कौन हैं ये
माता ने पुत्री से पूछ देखा था। उनकी कन्या इतनी लज्जाशीला थी कि विवाह की चर्चा से ही भागकर कहीं
‘ये चतुर्भुज हैं। चार वृषभों को श्रृंग पकड़कर रोक ले सकते हैं, किन्तु सात……!’सेवकों, सभासदों के हृदय धड़कने लगे लेकिन
जन-रुचि अद्भुत होती है। जनता किसी से उपकार-अपकार अधिक दिन स्मरण नहीं रखती। व्यक्ति का वर्तमान कृत्य ही जन-मन का
उसके लिये श्रीकृष्णचन्द्र की इच्छा ही सब कुछ। श्रीकृष्ण की बात वेदवाक्य। श्रीकृष्ण का संकेत सुभद्रा का जीवन। वह तो
अच्छा, ये परिहास कर रहे थे?’ मूर्च्छा दूर हुई शीतल स्निग्ध प्रेम स्पर्श पाकर। अंक में ही अपने को पाकर