रसोपासना – भाग-11 रहस्य निकुञ्ज
“सखी भाव” के बारे में, मैं स्पष्ट कर चुका हूँ… स्वसुख का नितान्त अभाव… और दूसरे के सुख में अपने
“सखी भाव” के बारे में, मैं स्पष्ट कर चुका हूँ… स्वसुख का नितान्त अभाव… और दूसरे के सुख में अपने
रंग दो ना बसन्त में अपने “मन” को आज… हो जाने दो ना… चित्त को उद्वेलित आज… देखो ! वसन्त,
“श्रीवृन्दावनमहिमामृतम्” के लेखक श्रीप्रबोधानन्द सरस्वती महाभाग लिखते हैं कि… “श्रीधाम वृन्दावन में प्रवेश करते ही… यहाँ सब सत् चिद् आनन्द
अब बताओ ! विवशता किसी को अच्छी लगती है ? पराधीन होना किसे प्रिय लगता है ?… पर ये प्रेम
🙏ब्रह्म संहिता में लिखा है – नित्य वृन्दावन सबसे ऊपर है… वैकुण्ठ से भी… गोलोक से भी… अद्भुत रहस्य से
साधकों !“जीवन मिला है दूसरों को सुख देने के लिये… सुख लेने के लिये नही”…बस इतनी सी बात अगर समझ
“रसब्रह्म” की उपासना हमारे श्रीधाम वृन्दावन के रसिक सन्तों ने खूब छक कर किया है… आज भी अगर आप अपने
प्रेम सीधी चाल चलता कहाँ हैं !… प्रेम की नदी सीधी बहती कहाँ है ! प्रेम नगरी में रोना, हँसने
गतांक से आगे- हित हरिवंश महाप्रभु जी के बचपन के पल प्रसंग 1:हितहरिवंश महाप्रभु जी 4-5 साल के थे तब का एक
रास मध्य ललिता जु प्रार्थना जु कीनी।कर ते सुकुमारी प्यारी वंशी तब दिनी।।एक समय जब नित्य रास परायण श्री श्यामा