ऋषि,महर्षि,मुनि,साधु और संत अंतर
आज जाने ऋषि और मुनियों के बारे में – भारत में प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व रहा
आज जाने ऋषि और मुनियों के बारे में – भारत में प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व रहा
लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि बाबा,आप को जब देखें ठाकुर जी की लीलाओं मे मगन रहते हो।थोड़ा सा हमें
एक राजा था उसने परमात्मा को खोजना चाहा। वह किसी आश्रम में गया। उस आश्रम के प्रधान साधु महाराज ने
।श्री हरि:। तत्ज्ञानं प्रशमकरं यदिन्द्रियाणां, तत्ज्ञेयं यदुपनिषत्सुनिश्चितार्थम्।ते धन्या भुवि परमार्थनिश्चितेहाः, शेषास्तु भ्रमनिलये परिभ्रमंतः ॥१॥ वह ज्ञान है जो इन्द्रियों की
आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन पाँच महाभूतों को ही पंचतत्त्व कहते हैं, इन्हीं पंचतत्वों के गुण रूप इस
।। ऐसी मरनी मर चलो.. ।। एक राजा के मन में यह काल्पनिक भय बैठ गया कि शत्रु उसके महल
कैसे नादान है ???हम 24 घंटे बाहर की दुनिया को देखते रहते हैं हम अपने अन्तर में देखने का प्रयास
पूज्य गुरुदेव कहते हैं — ज्ञान एवं बौद्धिकता मनुष्य की अमूर्त सम्पदा है ।ज्ञान मनुष्य की वास्तविक शक्ति है ।
भावना या भाव बहुत मायने रखता हैआप किसी भी पूजा पद्धति का विष्लेषण करें बिना भाव के किसी भी प्रकार
आत्मज्ञान और परमात्मज्ञान एक ही है। कारण कि चिन्मयसत्ता एक ही है, पर जीव की उपाधि से अलग-अलग दीखती है।