
जीवन जीने की कला मे ध्यान है
जीवन का जीने की कला का दूसरा सूत्र हैः प्रामाणिकता। एक ही तुम्हारा व्यक्तित्व होना चाहिए, दोहरा नहीं। पहला सूत्र

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योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।। जीव ब्रह्म को जानकर वह स्वयं ब्रह्मस्वरूप बनकर परम मोक्ष को प्राप्त होता है।(गीताजी) वह

जिन लोगों से ध्यान नहीं हो पा रहा तो म्रत्यु कैसे घटित होगी ? ध्यान और म्रत्यु मे ज्यादा कोई

सोशल मीडिया पे सभी उच्च स्तर के ज्ञानी हैं। लेकिन उनकी ऊंची ऊंची बातों से इतर प्रैक्टिकल अनुभव ही यथार्थ

शान्ति का मूल आधार केवल आध्यात्मिक विचार ही है। संसार के त्रिविध तापों और क्लेशों में उलझा मनुष्य अशान्त, व्यग्र,

।। श्रीहरि: ।। ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, यानी लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब

भगवान राम के दर्शन कैसे हो। इस दिल में भी भगवान राम के दर्शन कर पाऊं, यह आत्मा की आवाज

परमात्मा क्या है, कौन है, कहां है ?परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं। इसलिए न तो कहा जा सकता है कि कौन

ये समय ऐसा है कि धर्म मे राजनीति का दौर चल रहा है और इस सम्पूर्ण भारत के लिए के

आज्ञा, मूलाधार चक्र और इड़ा पिंगला, सुषुम्ना नाडीआज्ञा चक्र शास्त्र में इसके कमल कि दो पंखुड़ी कहा गया है,सभी चक्र