अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

आत्मा  परब्रह्म स्वरूप है

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।। जीव ब्रह्म को जानकर वह स्वयं ब्रह्मस्वरूप बनकर परम मोक्ष को प्राप्त होता है।(गीताजी) वह

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ध्यान और म्रत्यु

जिन लोगों से ध्यान नहीं हो पा रहा तो म्रत्यु कैसे घटित होगी ? ध्यान और म्रत्यु मे ज्यादा कोई

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आध्यात्मिक शान्ति

शान्ति का मूल आधार केवल आध्यात्मिक विचार ही है। संसार के त्रिविध तापों और क्लेशों में उलझा मनुष्य अशान्त, व्यग्र,

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आज्ञा चक्र की जागृती 

आज्ञा, मूलाधार चक्र और इड़ा पिंगला, सुषुम्ना नाडीआज्ञा चक्र शास्त्र में इसके कमल कि दो पंखुड़ी कहा गया है,सभी चक्र

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