अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

ईश्वर शुद्ध प्रकाश रूप

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। अर्थात् उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, तेजस्वी, पापनाशक, परमात्मा को

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वात्सल्य

भक्ति के संप्रदाय, प्रार्थना को मूल्य देते हैं, तो तीन शब्द समझ लेना, तो ही वात्सल्य समझ में आयेगा- १-

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परमेश्वर की महिमा

सूतजी बोले- हे मुनियों में उत्तम ब्राह्मणो ! एक अन्य ब्रह्मा का कल्प हुआ जो विश्वरूप नाम का था, वह

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नया क्या है

नया क्या है यह कथन पठन पाठन सब थोथा है मन के बहलाव, कहो तो मन को अटकाने का साधन

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ज्ञान_क्या_है

यह सृष्टि अखण्ड है। इसका बोध हो जाना ही ज्ञान है ।मनुष्य भी उसी का अभिन्न अंग है इस भावना

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अजन्म सदा जहाँ जन्मलियो,

अजन्म सदा जहाँ जन्मलियो,भवसिन्धु परे नहीं जीव बिचारो।चोर बनो जग को रचतावन,रक्षक हूँ जु सँहारन हारो॥निसकर्म सुनों श्रुति सो जिहि

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परमात्मा जगत गुरु

श्रीकृष्णं वन्दे जगत गुरु परमात्मा का अर्थ है आप भगवान राम मे भगवान कृष्ण मे अन्य देवता मे जिसमें भी

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