
“पण्डितराज”
प्रेम किया है पण्डित , संग कैसे छोड़ दूँगी ? जितनी बार भी पढ़ो ,, वही आनंद मिलता है। “पण्डितराज”.सत्रहवीं
प्रेम किया है पण्डित , संग कैसे छोड़ दूँगी ? जितनी बार भी पढ़ो ,, वही आनंद मिलता है। “पण्डितराज”.सत्रहवीं
. भगवान् का भजन गुप्त रखना चाहिये। इससे भजन करनेवाले को बड़ा लाभ होता है, इस पर एक दृष्टान्त
हरि ॐ तत्सत संतों को परम् हंस माना गया है।क्योंकिये अपने शरीर को तपाकर इस संसार रूपी भवसागर को मथकर
एक साधु को एक नाविक रोज इस पार से उस पार ले जाता था, बदले मैं कुछ नहीं लेता था,
इस कथा में गृहस्थ जीवन में अध्यात्मवाद को दर्शाता है। घर में कठोर मेहनत प्रेम का प्रतीक है। जिस घर
विज्ञान की जड़े हिला दी थी, इस संत ने.. “प्रह्लाद जानी” वो इंसान जिसने 76 सालो से जीवन मे कुछ
चरणों में काँटे लिए, लेकिन एक दिन क्या हुआ कि भगवान कह रहे थे — आ हा हा, कैकेई माता
प्रभु प्रेम हे परम पिता परमात्मा जी मै तुमको प्रणाम करता हूँ हे मेरे भगवान् नाथ हे दीनदयाल हे मेरे
साधना में लगन मोक्ष की प्राप्ति का साधन है। हम क्या करते हैं थोड़ी सी पुजा पाठ करते ही अपने
तूँ तूँ करता तूँ भया,मुझ मैं रही न हूँ। वारी फेरी बलि गईजित देखौं तित तूँजीवात्मा कह रही है कि