
अन्दर की खोज
परमात्मा अन्दर बैठा है और हम उसे बाहर ढुढते है हम यह नहीं समझते हैं भक्ति प्रेम श्रद्धा शान्ति तृप्ति
परमात्मा अन्दर बैठा है और हम उसे बाहर ढुढते है हम यह नहीं समझते हैं भक्ति प्रेम श्रद्धा शान्ति तृप्ति
किराए के घर में अपना कुछ भी नहीं है। ये काया और माया यहीं की यहीं रह जाएगी। अ प्राणी
अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है।
नित्य किरया कर्म ज्ञान योग भक्ति मार्ग का निचोड़ एवं प्रभु प्रेम का भाव है। हम कितनी ही बैठे बैठे
मै भगवान को भजता हुं मैं भगवान की पुजा करता हूँ मे मै तत्व का समावेश है मै शरीर हूँ।
हम राम राम कृष्ण कृष्ण भजते है। हम स्तुति करते हुए इस मार्ग पर आ जाते हैं कि एक मिनट
जय श्री राम भगवान को भजते हुए भगवान हमे आनन्द बहुत देते है। हृदय आनंद से भरा रहता है। मन
अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है।
हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर
मैं तो हूं ही नहीं मेरा कोई नाम भी नहीं है। न ही मेरी पहचान है। मै जो दिखाई देता