
प्रभु संकीर्तन 47
यह जीवन की सच्चाई है। एक दिन भी हम थोड़े कमजोर हो जाते हैं। तब घर वाले सबसे पहले दुत्कारते
यह जीवन की सच्चाई है। एक दिन भी हम थोड़े कमजोर हो जाते हैं। तब घर वाले सबसे पहले दुत्कारते
हम भगवान् के मन्दिर में जाकर दर्शन करते हैं इसलिए हमें लगता है कि भगवान मन्दिर में ही रहते हैं।
हमारे पास देखनेके लिये जो नेत्र हैं, वे जड़ संसारका अंग होनेसे संसारको ही देखते हैं, संसारसे अतीत चिन्मय भगवान्को
भक्त भगवान की भक्ति करता है तब मार्ग में उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पङता है। प्रथम मन का
भगवान की सच्ची भक्ति करोड़ो में से कोई एक करता है। किसी के दिल में यह प्रश्न उठता है कि
एक भक्त कहता है हम भगवान की माला जप करते हैं। मन्दिर में भजन कीर्तन करते हैं। हमे अपने घर
एक सखी नाम रस के प्रेम को बताते हुए कहती हैं कि सखी धीरे-धीरे राधे राधे राम राम का नाम
एक साधक ध्यान में श्री हरि का आत्म चिन्तन करते हुए श्री राम, जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे
भगवान ने हमें दो कान दिए हैं। हमे ग्रथ पढते हुए दोनों कान को सतर्क रखने होते है। एक कान
दिल पर पहरे लग नहीं सकते हैं। भाव से भक्त वृन्दावन में बिहारी जी के पास पहुंच जाता है। जब