
साधक स्थिर है
साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए

साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए

एक दिन साधक के हृदय में प्रशन उठता है आत्म बोध आत्मज्ञान क्या है , आत्म स्वरूप कैसे होता है।

सांवरिया तेरी जोगन मै बन जाऊं जोगन बनकर वन वन डोलू, तेरे ही गुण गांऊ। नीज उर की कंपित वीणा

वेदों का सद् उपदेश हैवेदों का सद् उपदेश है, सुनलो ध्यान लगाय। भव बन्धन दुर होता है,आत्म के ज्ञान से,प्रभु

अन्तःकरण मे ज्ञान की ज्योति जगा कर देख। भीतर है सखा तेरा, जरा मन लगा के देख अन्तःकरण मे ज्ञान

अजब तेरी रघुराई गजब तेरी है मायाजीवन बीत गया तुझको ना समझ पायाअजब तेरी रघुराई गजब तेरी है माया पंचभूतो

मोहे प्रेम का अमृत पिला दो प्रभु जीवन नैया डगमग डोले, व्याकुल मनवा पी पी बोले । इस नैया को

परमात्मा को हम ग्रथों में ढुढते है मन्दिर और मुर्ति में ढुढते है। व्रत और त्योहार में ढुढते है।कथा पाठ

मन्दिर आत्मा के सम्बंध का केन्द्र है। मुर्ति आत्मा का प्रतिबिंब है। मुर्ति में भगवान हमें उसी रूप में दिखाई

जरा सिर को झुकाओ वासुदेव जी,तेरे सिर पे त्रिलौकी नाथ हैं, छुंऊ इनके चरण बङे प्रेम से, आज यमुना की