दर्शन भाव
भक्त जब भगवान नाथ की मन ही मन विनती स्तुति नमन वन्दन और नाम सिमरण करता है। तब भक्त जानता
भक्त जब भगवान नाथ की मन ही मन विनती स्तुति नमन वन्दन और नाम सिमरण करता है। तब भक्त जानता
भगवान सबमें समाया हुआ है। भगवान को भजते हुए हम परमात्मा का प्रेम परमात्मा के आनंद रस से झुमते हैं।
पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा । फिर पानी बह जाएगा और
नाम-स्वाँस दोउ विलग चलत हैं, इनकौ भेद न मोकौं भावै॥स्वाँसहि नाम नाम ही स्वाँसा, नाम स्वाँस कौ भेद मिटावै।बाहिर कछु
भक्त भगवान को भजते हुए, भक्त भगवान राम में समा जाना चाहता है।भक्त राम राम राम भजता रहता है। भक्त
हम भगवान का सिमरण निस्वार्थ भाव से करें भगवान मेरे है देखो भगवान मुझे देख रहे हैं जब तक हम
अध्यात्मवाद के आनंद के लिए हमें बाहरी साज की आवश्यकता नहीं है। साज दिल में सजे हुए हैं जिस दिन
हमे पहले परम पिता परमात्मा का बनना होगा। परमात्मा से प्रेम करना होगा। एक ही भगवान पर विस्वास करना होगा।
हम विधि विधान से व्रत और नियम करते हैं हम दिपक जलाऐगे आरती करते हैं माला जप करते ग्रंथों का
तुम सत्य हो तुम चैतन्य हो तुम ही आनंद हो। तुम ही राम तुम ही कृष्ण तुम ही बुद्ध तुम