रामनवमी के नौ राम,
रामनवमी के नौ राम, परमात्मा से राजा, पुत्र से पिता और पति तक भगवान राम के नौ रुप जो सिखाते
रामनवमी के नौ राम, परमात्मा से राजा, पुत्र से पिता और पति तक भगवान राम के नौ रुप जो सिखाते
माता यशोदा वात्सल्य प्रेम की साकार मूर्ति हैं। परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र की नित्यलीला में वे नित्य माता है।
मीरा जब वृंदावन पहुंची तो वृंदावन में जो कृष्ण का सबसे प्रमुख मंदिर था, उसका जो पुजारी था, उसने तीस
राम नाम की महिमा अनंत और अपार है। भगवान राम से भी बड़ा है उनका नाम। भगवान स्वयं भी राम
राधाजी को वृंदावन की “अधीश्वरी”माना जाता है.स्कंद पुराण के अनुसार “राधाजी”भगवान “श्रीकृष्ण” की आत्मा हैं उनकी प्राणशक्ति हैँ.श्रीकृष्ण के बिना
राधे जू की चरित्र का वर्णन करने का सामर्थ्य ना तो ब्रह्मा जी में है,और ना ही श्री शारदा जी
मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्।। यन्नखेन्दुरुचिर्ब्रह्म ध्येयं ब्रह्मादिभिः सुरैः।गुणत्रयमतीतं तं वन्दे वृन्दावनेश्वरम्।। अविस्मृति कृष्णपदारविन्दयोःक्षिणोत्यभद्राणि शमं तनोति
जय शङ्खगदाधर नीलकलेवर पीतपटाम्बर देहि पदम्।जय चन्दनचर्चित कुण्डलमण्डित कौस्तुभशोभित देहि पदम्।।१।। जय पङ्कजलोचन मारविमोहन पापविखण्डन देहि पदम्।जय वेणुनिनादक रासविहारक वङ्किम
कबीर जी हाथ जोड़कर नम्रता से बोले: गुरूदेव ! यह सही है कि आपने मुझे चेलों में बिठकार दीक्षा नहीं
प्रेमरस से युक्त किशोरी जी! हे किशोर अवस्था वाली राधिके! हे प्रेमरस में सराबोर वृषभानुदुलारी! मेरे ऊपर भी कृपा की