[45]”श्रीचैतन्य–चरितावली”
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीनृसिंहावेश किं किं सिंहस्ततः किं नरसदृशवपुर्देव चित्रं गृहीतोनैतादृक् क्वापि जीवोऽद्भुतमुपनय मे देव संप्राप्त
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीनृसिंहावेश किं किं सिंहस्ततः किं नरसदृशवपुर्देव चित्रं गृहीतोनैतादृक् क्वापि जीवोऽद्भुतमुपनय मे देव संप्राप्त
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीवाराहावेश नमस्तस्मै वराहाय हेलयोद्धरते महीम्।खुरमध्यगतो यस्य मेरु: खुरखुरायते।। ‘आवेश’ उसे कहते हैं कि
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामनिमाई के भाई निताई पुण्यतीर्थे कृतं येन तपः क्वाप्यतिदुष्करम्।तस्य पुत्रो भवेद्वश्यः समृद्धो धार्मिकः
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामधीर-भाव निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तुलक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेच्छम्।अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीवास के घर संकीर्तनारम्भ चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्निनिर्वापणंश्रेयःकैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्।आनन्दाम्बुधिवर्द्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनंसर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्।। सम्पूर्ण
।। श्रीहरि:।।* [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम *दिग्विजयी का वैराग्य* [30]
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम अद्वैताचार्य और उनका सन्देह अर्चयित्वा तु गोविन्दं तदीयान्नार्चयेत्तु यः। न स भागवतो
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम पूर्व बंगाल की यात्रा विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशे
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम पत्नी-वियोग और प्रत्यागमन पतिर्हि देवो नारीणां पतिर्बन्धुः पतिर्गतिः। पत्युर्गतिसमा नास्ति दैवतं वा
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम नवद्वीप में दिग्विजयी पण्डित सभायां पण्डिताः कोचित्केचित्पण्डितपण्डिताः। गृहेषु पण्डिताः केचित्केचिन्मूर्खेषु पण्डिताः।। भगवद्दत्त