ओ राम के कबीर
कबीर जी हाथ जोड़कर नम्रता से बोले: गुरूदेव ! यह सही है कि आपने मुझे चेलों में बिठकार दीक्षा नहीं
कबीर जी हाथ जोड़कर नम्रता से बोले: गुरूदेव ! यह सही है कि आपने मुझे चेलों में बिठकार दीक्षा नहीं
भगवान श्री कृष्ण की विद्या स्थलीउज्जैन स्थित गुरु सांदीपनि आश्रम वैदिक पथिक उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि आश्रम ऋषि सांदीपनि की
गुरुनानक देव जी ने कहा: मैं तो अपने विशाल जगन्नाथ जी की आरती में प्रत्येक क्षण सम्मिलित रहता हूँ। उसकी
सतगुरु अपने शिष्य को संसार रूपी भवरोग से मुक्त करता हैजो असत्य से सत्य की ओर ले जाएंजो मृत्यु
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
गुरु या सद्गुरु यह विषय खोजने का विषय ही नहीं है !!!गुरु खोजे नही जाते , न ही गुरु ढूंढना
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ उठो गुरु प्यारो नाम जपने का समय हो गया हैअमृत नाम महा रस मीठा जिसने पिया उसने सचखण्ड पाया।
एक समर्थ गुरु अपने अंतकरण से शिष्य के अंतकरण में अपनी सारी शक्तियां उतार देते हैं, और समय के साथ
आज का प्रभु संकीर्तनजीवन मे मनुष्य बहुत कुछ जानने और सीखने का प्रयत्न करता है।सीखना और जानना एक कला है।जो
श्री गुरुगीता प्रास्ताविक भगवान शंकर और देवी पार्वती के संवाद में प्रकट हुई यह ‘श्रीगुरुगीता’ समग्र ‘स्कन्दपुराण’ का निष्कर्ष है।