[19]हनुमान जी की आत्मकथा
( रावण और माँ वैदेही का सम्वाद – हनुमान ) तेहि अवसर रावण तहँ आवा…(रामचरितमानस) पता नही आज क्यों अयोध्या
( रावण और माँ वैदेही का सम्वाद – हनुमान ) तेहि अवसर रावण तहँ आवा…(रामचरितमानस) पता नही आज क्यों अयोध्या
(मैंने लंका में माँ सीता को खोजा था – हनुमान) मन्दिर मन्दिर प्रति कर शोधा…(रामचरितमानस) साधकों ! मुझे पता नहीं
आज के विचार ( लंका में मुझे मेरा भाई मिला – हनुमान )भाग-17 तब हनुमन्त कहा सुनु भ्रातादेखी चहहुँ जानकी
आज के विचार (समुद्र को जब मैंने लाँघा – हनुमान)भाग-14 जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,एही भाँति चलेउ हनुमाना !(रामचरितमानस) भरत
(मैंने देखी वो रावण की लंका – हनुमान) गयउ दसानन मंदिर माहीं…(रामचरितमानस) हनुमान जी ! रावण की लंका कैसी थी
आज के विचार ( जामवन्त ने मुझे मेरी शक्ति याद दिलाई – हनुमान )भाग-13 सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(रामचरितमानस) हम सब लोग
(तब ऋषि ने मुझे श्राप दिया था – हनुमान) सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(श्रीरामचरितमानस) अयोध्या के उस राज उद्यान में, भरत जी
(जब बाली और सुग्रीव शत्रु बन गए – हनुमान) प्रीति रही कछु बरनी न जाई…(रामचरितमानस) भरत भैया ! पर इन
( किष्किन्धा का बाली ) बाली महाबल अति रनधीरा…(रामचरितमानस) किष्किन्धा को एक “वानर राज्य” कह सकते हैं… पर ये राज्य
(मैं खूब नाचा श्रीरामलला के सामने – हनुमान) दासोहम कौशलेन्द्रस्य…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! मैं आ गया था विद्या अध्ययन