
[38]*हनुमान जी की आत्मकथा *
आज के विचार (मेरी माँ मैथिली करुणा की सागर हैं-हनुमान)भाग-38 न कश्चिद् ना पराध्यति…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! दशानन का
आज के विचार (मेरी माँ मैथिली करुणा की सागर हैं-हनुमान)भाग-38 न कश्चिद् ना पराध्यति…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! दशानन का
इस संसार मे हम आये है तो अवश्य ही कोई कर्तव्य हमारा पूरा करना बाकी रह गया है जो पीछे
(सुलोचना अपने पति के साथ सती हुयी…) लाय सजीवनि प्राण उवारे…(गो. तुलसीदास जी) वधू उर्मिला महासती है… रात्रि के प्रथम
(अहिरावण का वध…) अहिरावण की भुजा उखाड़े…(गो. श्री तुलसीदास) आपने विवाह भी किया है हनुमान जी ? रघुकुल के कुछ
(सुलोचना अपने पति के साथ सती हुयी…) लाय सजीवनि प्राण उवारे…(गो. तुलसीदास जी) वधू उर्मिला महासती है… रात्रि के प्रथम
आज के विचार ( महान रघुकुल…मैंने प्रथम बार देखा था)भाग-35 अहह दैव मैं कत जग जायउँ ..प्रभु के एकहु काज
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे…(श्रीतुलसीदास जी) भरत भैया के साथ आज रघुकुल के कुछ कुमार भी आ गये थे… जिन्हें मेरे
चला इन्द्रजित अतुलित योद्धा…(रामचरितमानस) भरत भैया ! सेतु का कार्य पूरा हुआ… और हम लोग लंका के लिए चल पड़े
आज के विचार (गिरी गोवर्धन को मैंने श्रीकृष्ण दर्शन कराया था – हनुमान)भाग-32 गिरिवरधारी हनुमान, तुम पालक सबके…(गो. श्रीतुलसीदास) मैं
सिन्धु तरे पाषाण…(रामचरितमानस) भरत भैया ! सागर में सेतु बाँधनें का कार्य शुरू हो गया था । सागर पार कैसे