मीरा चरित भाग- 69
‘उसकी इच्छा के सामने सारे सिद्धांत और नियम धरे के धरे रह जाते हैं, थोथे हो जातें हैं।अत: केवल उसकी
‘उसकी इच्छा के सामने सारे सिद्धांत और नियम धरे के धरे रह जाते हैं, थोथे हो जातें हैं।अत: केवल उसकी
विक्रमादित्य का आक्रोश…… राणा विक्रमादित्य ने एक दिन बड़ी बहन उदयकुँवर बाईसा को बुला कहा- ‘जीजा ! भाभी म्हाँरा को
भोजराज की आँखों के चारो ओर गड्ढे पड़ गये थे।नाक ऊँची निकल आई थी।नाहर से खाली हाथ लड़ने वाला उनका
दाझया ऊपर लूण लगायो हिवड़े करवत सारयो।मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरि चरणा चित धारयो। ‘म्हें थारो कई बिगाड़यो रे
दुष्टों का विनाश करना और साधुओं का परित्राण करना तो उनके अवतार काल का गौण कार्य होता है।जिसके भ्रू- संकेत
किसी को अप्रसन्न भी करना नहीं चाहती…. किंतु….. ‘ – निःश्वास छोड़ कर उन्होंने बात पूरी की- ‘अपने चाहने से
‘दृढ़ संकल्प हो तो मनुष्य के लिए दुर्लभ क्या है?’- मीरा ने कहा।‘मेरी इच्छा से तो कुछ होता जाता नहीं
विरहावेश में उसे स्वयं का भी ज्ञान न रहता।पुस्तकों के पृष्ठ-पृष्ठ-में, वस्त्रों के कोने कोने में, धूल के कण कण
विधाता ने सोच समझ करके जोड़ी मिलाई है, पर आकाश कुसुम कैसे?’‘इसलिए कि वह धरा के सब फूलों से सुंदर
‘गणगौर पूजने का मुहूर्त आ गया है बावजी हुकुम, रात को ही भाभी म्हाँरा को कहलवा दिया था।सबेरे नर्मदा जीजी