
बिहारी जी की शरण
एक बार की बात है, वृन्दावन में एक संत रहा करते थे. उनका नाम था कल्याण. बाँके बिहारी जी के
एक बार की बात है, वृन्दावन में एक संत रहा करते थे. उनका नाम था कल्याण. बाँके बिहारी जी के
*ऐसी लगन लगा दे तू , उठ उठ कर मैं रातों को**कभी मैं पकडू माला को , कभी मैं जोडू
भगवान की प्रत्येक लीला रहस्यों से भरी होती है। वे कब कौन-सा काम किस हेतु करेंगे, इसे
आज का प्रभु संकीर्तन।जब तक किसी भक्त में प्रेम की प्यास गोपी की तरह नही होगी,तब तक भक्त को श्री
श्रीवृषभान नृपति के आंगन,बाजत आज वधाई सो ।।कीरति देरानी सुखसानी सुता,सुलच्छन जाई हो ।।भक्ति सर्ब दासी है जाकी,सियाहूते अधिक सुहाई
आप अभी जानते हैं कि जैसे ही आप बिहारी जी की गली में पहुंचते हैं तो दर्शन के लिए
*मैं निराकार, मैं ही आकार हूँ,**मैं महाकाल, मैं ही किरात हूँ ।।**समय का प्रारब्ध, मैं समय का ही अंत हूं,**मैं
सुभाषितॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ अर्थात:परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ
सभी महान गुरुजन बताते हैं, कि इस शरीर के भीतर अमर आत्मा है। उस ईश्वर की एक चिंगारी जो सब
भगवान श्री कृष्ण गोपियों के नित्य ऋणी हैं, उन्होंने अपना यह सिद्धात घोषित किया है:- ये यथा माँ प्रपधन्ते तांस्तथै