मीरा चरित भाग-87
‘दीवानजी तुमसे इतने रूष्ट क्यों हैं बीनणी? नित्य प्रति तुम्हें मारने के लिए कोईन कोई प्रयास करते ही रहते हैं।
‘दीवानजी तुमसे इतने रूष्ट क्यों हैं बीनणी? नित्य प्रति तुम्हें मारने के लिए कोईन कोई प्रयास करते ही रहते हैं।
सभी देशवासियों कोपावन गुरुपूर्णिमा पर्वकी हार्दिक शुभकामनाएं.! अनंतसंसार समुद्रतार नौका-यिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम्।वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यांनमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।। कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यांदौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम्।दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यांनमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।। नता ययोः
‘चल ! कहाँ चलना है?’ कहते हुये मेरा हाथ पकड़ कर वे चल पड़े।सखी वहाँ कदम्ब की डाली पर बँधे
इस घर की बाईसा हुकुम उस घर की बहू हैं।उन्होंने यह बात श्री जी से अर्ज कर दी थी।जान समझकर
नित्य प्रातः स्मरणीय परम पूज्य गुरुदेव श्री श्री 1008 अन्नदाता जी महाराज बंगलाधाम,घठवाडी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम…..गुरु पूर्णिमा
जो भी साधक हर रोज उगते सूर्य के सामने बैठकर भगवान सूर्य की इस स्तुति का पाठ अर्थ सहित करता
एक आदमी के घर भगवान और गुरु दोनो पहुंच गये। वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा। वह भगवान
।। ।। ॐ आञ्जनेयाय नमः।ॐ महावीराय नमः।ॐ हनूमते नमः।ॐ मारुतात्मजाय नमः।ॐ तत्वज्ञानप्रदाय नमः।ॐ सीतादेविमुद्राप्रदायकाय नमः।ॐ अशोकवनकाच्छेत्रे नमः।ॐ सर्वमायाविभंजनाय नमः।ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे
‘सखियों, कल चलोगी गोरस बेचने ?’– ललिता जीजी ने पूछा।हम सब जल भरने आयी थी। उधरसे बरसाने की सखियाँ भी
उदयकुँवर बाईसा ने भय और आश्चर्य से उनकी ओर देखा।‘हाँ जीजा हुकुम, अब आप चाहे जो फरमायें मौड़ौं और यात्रियों