[32]हनुमान जी की आत्मकथा
आज के विचार (गिरी गोवर्धन को मैंने श्रीकृष्ण दर्शन कराया था – हनुमान)भाग-32 गिरिवरधारी हनुमान, तुम पालक सबके…(गो. श्रीतुलसीदास) मैं
आज के विचार (गिरी गोवर्धन को मैंने श्रीकृष्ण दर्शन कराया था – हनुमान)भाग-32 गिरिवरधारी हनुमान, तुम पालक सबके…(गो. श्रीतुलसीदास) मैं
सिन्धु तरे पाषाण…(रामचरितमानस) भरत भैया ! सागर में सेतु बाँधनें का कार्य शुरू हो गया था । सागर पार कैसे
सोई सम्पदा विभीषणहिं सकुच दीन्ह रघुनाथ…(रामचरितमानस) भरत भैया ! लक्ष्मण जी के कहने से… महाराज सुग्रीव ने शीघ्रता दिखाई… और
देवी महालक्ष्मी भगवान नारायण की शक्ति व संसार की समस्त सम्पत्तियों की स्वामिनी हैं। महालक्ष्मी के दो रूप हैं- #श्रीरूप
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरनादीन बन्धु प्रणता रति हरना ।(रामचरितमानस) भरत भैया ! मैं महाराज सुग्रीव जामवन्त युवराज अंगद के
एक सम्वाददाता, मैं और श्रीहनुमान जी नाम पहारू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट…(रामचरितमानस) साधकों ! कल चुनाव था… इतनी जिम्मेवारी
देखि विचार त्यागी मद मोहा…(रामचरितमानस) अवध से आने के बाद मैं कुञ्ज में गया था आज… प्रातः के 5 बज
तत्तेनुकम्पाम् सुसमीक्षमाणो…(श्रीमद्भागवत) दुःख बहुत है मेरे जीवन में क्या करूँ ? एक दुःख जाता है… जैसे-तैसे… फिर दूसरा दुःख मुँह
एक बार की बात है, पांच सखियाँ थीं, पांचो श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं. एक दिन वे वन में
आज के विचार ( अयोध्या का लक्ष्मण किला ) रघुपति कीरति विमल पताका…(रामचरितमानस) अवध के लक्ष्मण किला में आप कभी