
ठाकुर जी की होली लीला
ठाकुरजी की ये लीला बडी ही मनमोहक है। नंदलाल ने सुबह ही टेरकंदब पर अपने सभी मित्रों को बुलाया और

ठाकुरजी की ये लीला बडी ही मनमोहक है। नंदलाल ने सुबह ही टेरकंदब पर अपने सभी मित्रों को बुलाया और

ऋतु बसन्ती गूँजे रे कोयलियापहनूँ न प्रियतम आज पायलियाहर घुंघरू ने तेरी याद दिलाईबिरहन रोये……… बिरहन रोये आओ रे कन्हाईप्रियतम

हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल केशव माधव गोविन्द बोल॥ नाम प्रभु का है सुखकारी,पाप काटेंगे क्षण में भारी।

कान्हा तोरी सांवली सुरतिया पे वारी सखी री मैं तो कारे रंग पे वारी वारी रे वारी रे मैं तो

सनेही एक विहारी-विहारिनि।एक प्रेम रुचि रचे परस्पर, अद्भुत भाँति निहारिनि॥तन सौं तन, मन सौं मन, अरुझ्यौ, अरुझनि वारनि-हारनि।यह छबि देखत

नैनन में श्याम समाए गयो,मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।लुट जाउंगी श्याम तेरी लटकन पे,बिक जाउंगी लाल तेरी मटकन

खेलत मदन गोपाल बंसत ।नागरि नवल रसिक-चूडामनि, सब बिधि रसिक राधिका कंत ॥नैन-नैन-प्रति चारु बिलोकनि, बदन-बदन-प्रति सुंदर हास ।अंग-अंग प्रति

तेरा नाम साझ सवेरे रटू , राधा रमण मेरे राधा रमण मेरे, राधा रमण मेरे,राधा रमण मेरे, राधा रमण मेरेसिर

कैसे कहूं सखी, मन मीरा होता तो श्याम को रिझा लेता उन्हे नयनो में समा लेता, ह्रदय राग सुना देता
हे मैय्या यशोमती मैय्या से,बोली बृज बाला,लूट लियो मेरो माखन,तेरो नन्दलाला । पहले सुनाई मुरली,मन हर लिन्हो,सुध बुध भुलाई मैय्या,ऐसो