भजन (Bhajan)

धरती पर ही स्वर्ग का

धरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास । निरख चंद्र मुख चांदनीमुग्ध मगन आकाशधरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास

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घट माही राम

एक बार की बात है तुलसीदास जी सत्संग कर रहे थे अचानक वे मौज में बोलेघट में है सूझत नहीं

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राम नाम नित हृदय धरि

राम नाम नित हृदय धरि जपत रहै सिय राम।। नहिं मम बुद्धि,सबद नहिं,नहि हिय मोरे भाव।नहिं छमता,नहिं कवित‌ई, मातु चरन

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