
तुम मुझमें प्रिय
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्यातारक में छवि, प्राणों में स्मृति,पलकों में नीरव पद की गति,लघु उर में पुलकों की
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्यातारक में छवि, प्राणों में स्मृति,पलकों में नीरव पद की गति,लघु उर में पुलकों की
शिव में ध्यान लगाकर शिवमय हो जाऊँ महाकाल की भस्म बनूँ, ओंकार की गूँज हो जाऊँ, सोमनाथ के सागर जैसी,
ये राम का सेवक है ये राम दीवाना है प्रभु राम की महिमा को हनुमान ने जाना है,हर रोम मे
बसौ मेरे नैनन में नंदलाल।मोहनी मूरत सांवरी सूरत, नैना बने बिसाल।मोर मुकुट मकराकृति कुंडल, अरुण तिलक शोभे भाल।*अधर सुधारस मुरली
भवभीति की रीति हरौ रघुवर हिरदय में आइ के वास करौ।पद प्रीति की होय प्रतीति मोहे मम नैनन आइ निवास
अगर हम विष्णुपुराण वर्णित लघुविष्णुसहस्रनाम का ही पाठ करें तो निश्चित ही विष्णु सहस्रनाम का फल मिल जाता है। अलं
सखियों मिल मंगल गावे यशोदा जायो लाल निआओ नि सखियाँ मिल खुशिया मनावे नन्द के घर आया लाल नि, सुंदर
गुरु देव तुम्हारे चरणों में बैकुंठ का वास लगे मुझको,अब तो तेरे ही रूप बस प्रभु का एहसास लगे मुझको,गुरु
कान्हा रे सुन विनती मेरी एक झलक दिखला देमेरे तपते अंतर में तेरी प्रीत की नीर बहा दे..एक झलक दिखला
शिव हरे शिव राम सखे प्रभो, त्रिविधतापनिवारण हे विभो।अज जनेश्वर यादव पाहि मां, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।१।। हे