भजन (Bhajan)

घट माही राम

एक बार की बात है तुलसीदास जी सत्संग कर रहे थे अचानक वे मौज में बोलेघट में है सूझत नहीं

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राम नाम नित हृदय धरि

राम नाम नित हृदय धरि जपत रहै सिय राम।। नहिं मम बुद्धि,सबद नहिं,नहि हिय मोरे भाव।नहिं छमता,नहिं कवित‌ई, मातु चरन

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दिव्य रथ

जय जय सियाराम जी आरूढ़  दिव्य  रथ  पर  रावण,नंगे   पद    प्रभुवर  धरती  पर!तन वसनहीन  शिर   त्राणहीन,यह युद्ध  अनोखा  जगती  पर!!                               

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