विजय रथ यही हमारा है!
जय जय सियाराम जी आरूढ़ दिव्य रथ पर रावण,नंगे पद प्रभुवर धरती पर!तन वसनहीन शिर त्राणहीन,यह युद्ध अनोखा जगती पर!!उस
जय जय सियाराम जी आरूढ़ दिव्य रथ पर रावण,नंगे पद प्रभुवर धरती पर!तन वसनहीन शिर त्राणहीन,यह युद्ध अनोखा जगती पर!!उस
जपने वाले को ही मिलता भगवान हैं नाम जप का सुखद होता परिणाम है नाम जपना नहीं इतना आसान हैगुरु
।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-सोइ सर्बगय गुनी सोइ ग्याता।सोइ महि मंडित पंडित दाता।। धर्म परायन सोइ कुल त्राता।राम चरन जा
रघुनाथ चरन जब सरन गहे अमरावती वासी का कहिये भवानी से भाव जगै उर में तब और के भाव को
।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। भगवान श्री कृष्ण की दिव्य रास लीला में प्रत्येक गोपी यही सोच रही थी
हटे वह सामनेसे, तब कहीं मैं अन्य कुछ देखूँ।सदा रहता बसा मनमें तो कैसे अन्यको लेखूँ ? उसीसे बोलनेसे ही
🌹देखे जब मन-मोहन मोहन प्रेमानन्द-सुधा-सागर।नित-नवरूप-महोदधि, गुण-निधि सकल कलामय, नट-नागर॥ शब्द एक निकला नहिं मुखसे, नेत्र एकटक रहे निहार।बिगलित हुआ हृदय
प्रभु दयासिंधु करुणानिधान।रघुनायक जग के बन्धु मित्र धृतशायक शर कलिमल निदान।।प्रभु पद प्रणीत ब्रह्माण्ड सृष्टि एकल प्रचेत वेदांग ज्ञान।तारक नक्षत्र
हमने उस परमात्मा को नटराज कहा है l एक मूर्तिकार, मूर्ति बनाता है, उसके बाद मूर्ति अलग है और मूर्तिकार
मामवलोकय पंकज लोचन।कृपा बलिोकनि सोच बिमोचन॥ नील तामरस स्याम काम अरि।हृदय कंज मकरंद मधुप हरि॥ कृपापूर्वक देख लेने मात्र से