
राम आलोकिक युग नायक है
राम बसे है निषाद के हृदय मेंराम बसे है केवट के परक्षलिन मेंराम बसे जटायु के कटे पंखों मेंराम बसे
राम बसे है निषाद के हृदय मेंराम बसे है केवट के परक्षलिन मेंराम बसे जटायु के कटे पंखों मेंराम बसे
अयोध्या धाम सजा है मेरे दिल में प्रशन उठता है अयोध्या धाम क्या मंदिर सजा है अयोध्या धाम में प्राण
श्री राम के भक्त सुनो,ले भगवा हाथ में निकलो तुमकर दो भगवामय जग कोरंग भगवे में अब रंगलो तुमदर्शन करके
राम लखन भरत शत्रुघ्न बीच में जानकी माई हैं मारुति नन्दन संग बिराजे ,, निरख रहे रघुराई हैंबरसों बाद अयोध्या
।। इन्द्रकृत श्रीराम- स्तुति रामचरितमानस छंद-जय राम सोभा धाम, दायक प्रनत बिश्राम।।धृत त्रोन बर सर चाप, भुजदंड प्रबल प्रताप।।जय दूषनारि
एवमस्तु कहि रघुकुलनायक। बोले बचन परम सुखदायक॥सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना॥॥एवमस्तु’ (ऐसा ही हो) कहकर
सजी अयोध्या अवसर आया मंदिर के निर्माण कापरम पुजनीय धाम का मै सेवक श्री राम कासुरय वंश का सोरय दिखातासरयू
।। नमो राघवाय ।। कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक।मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।। ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा।उभय बेष
अवध में हो रही जय जयकारदेख के राम लैला को तन मन हर्ष अपार अवध में हो रही जय जयकारशुभ
प्रभु राम की महिमा भारी, राम नाम की धुन में, डूबा जग सारा, जय श्री राम, जय श्री राम, गूंजे