
एक भक्त शिव के सम्मुख
भगवान शिव से कुछ भी छुपा हुआ नही है, वो सब देख रहे है, उनके चार मुख चारो दिशाओ में

भगवान शिव से कुछ भी छुपा हुआ नही है, वो सब देख रहे है, उनके चार मुख चारो दिशाओ में

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभित लिंगम् ।जन्मजदुःखविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम् ।रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥ सर्वसुगंधिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम् ।सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्

नागेन्द्रहाराय ,त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,तस्मै

भोला हुआ रे दिवाना बेल पत्र में क्या गुण है, भोला हुआ रे दिवाना ,नलके का पानी मेरे भोले को

शिव में ध्यान लगाकर शिवमय हो जाऊँ महाकाल की भस्म बनूँ, ओंकार की गूँज हो जाऊँ, सोमनाथ के सागर जैसी,

शिव हरे शिव राम सखे प्रभो, त्रिविधतापनिवारण हे विभो।अज जनेश्वर यादव पाहि मां, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।१।। हे

परमपिता ब्रह्मा ने परमात्मा परंब्रह्म शिव की इस स्तोत्र द्वारा उपासना की थी। इसीलिए इस स्तोत्र को ब्रह्मा कृत माना

शिव रूद्र अभिषेक एक बहुत ही उत्तम स्तोत्र जो महाभारत के द्रोणपर्व में अर्जुन द्वारा रचित है। इसी स्तोत्र के

जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा कर करतार हरेजय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे,जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख सार
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा कर करतार हरे जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख सार हरे जय शशि शेखर, जय