ब्रह्मादि देवोंद्वारा भगवान् की स्तुति ।।
।। जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत
।। जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत
बीता समय हाथ नहीं आये,सोच समझ अज्ञानीथोडी बची है तेरी जिंदगानी।। गर्भमास में कौल किया,तूने सारी सुध विसराई।कर्म रेख नहीं
लग रही आस करूं ब्रजवास, तलहटी गोवर्धन की मैं।भजन करूं और ध्यान धरूं, छैंया कदमन की मैंसदा करूं सत्संग मंडली,संत
सब राह बंद पड़ जाती हैं,तब एक सहारा होता है,जब कोइ न संगी साथी हो,गोविंद हमारा होता है, जब टूटे
चेहरे चेहरे में नज़र आये चेहरा तेरा। एक दस्तक हुई दिल पर तेरे दीदार से,हो गए हम तेरे देखा जो
हे केशव, हे नाथ, मैं आपकी शरण मे हूँमैने जाने अनजाने मे , हाथ , पाँव , वाणी , शरीर
प्रेम का सागर लिखूं!या चेतना का चिंतन लिखूं!प्रीति की गागर लिखूं,या आत्मा का मंथन लिखूं!रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,चाहे जितना
आज कदंब की डाली झूले,श्रीराधा नंदकिशोरआहा…….!!कितना मनोरम दृश्य हैं… अरे छाई सावन की है बदरिया,और ठंडी पड़े फुहार,जब श्यामसुंदर बजाई
सावन मास में वृंदावन में बिहारी जी के फूल बंगले सजते हैं सब सावन के झूलों के गीत गा गा
मेरे मन के तार तार में, भगवान छुपे बैठे हैं, मेरी श्रद्धा और विश्वास में, भगवान छुपे बैठे हैं। ये