विविध भजन (Vividh Bhajan)

बीता समय हाथ नहीं आये,

बीता समय हाथ नहीं आये,सोच समझ अज्ञानीथोडी बची है तेरी जिंदगानी।। गर्भमास में कौल किया,तूने सारी सुध विसराई।कर्म रेख नहीं

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प्रेम का सागर लिखूं!

प्रेम का सागर लिखूं!या चेतना का चिंतन लिखूं!प्रीति की गागर लिखूं,या आत्मा का मंथन लिखूं!रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,चाहे जितना

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