मेरे मन के तार तार में
मेरे मन के तार तार में, भगवान छुपे बैठे हैं, मेरी श्रद्धा और विश्वास में, भगवान छुपे बैठे हैं। ये
मेरे मन के तार तार में, भगवान छुपे बैठे हैं, मेरी श्रद्धा और विश्वास में, भगवान छुपे बैठे हैं। ये
पिंजरा निकालना बाकी हैनिकाल लाया हूँ एकपिंजरे से मैं एक परिंदापरिंदे के तनहा दिल सेपिंजरा निकालना बाकी है परिंदे तेरा
हे कृष्णवदन हे मधुसूदन,घनश्याम कहे या मनमोहना। नन्दलाल, गोविन्द गोपाल तेरे दर्शन को तरस रहे नैना।श्यामल पंखी तेरा मोर मुकुट,
पूर्ण माहि रहना रे साधोयही सत्गुरु का कहना रे साधोपूर्ण माहि रहना पूर्ण ज्ञान स्वयं परकाशीकाटे नाम रूप की फांसीसहज
मन तड़पत हरि दरशन को आज ॥मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज ।आ विनती करत हूँ रखियो लाज ॥ मन
मुरलिया करत हिया में झंकार।अधर धरै जब कृष्ण कन्हैयाबाजत दिल के तार।मुरलिया करत हिया में झंकार तान धरै जब जब
कई जन्मों से बुला रही हु कोई तो रिश्ता जरूर होगा॥नज़रो से नज़ारे मिला ना पायी मेरी नज़र का कसूर
क्यों धीरज खोये जाती है वह आयेंगे आयेंगे,आशा रख पगली वो आयेंगे,हरी आयेंगे हरी आयेंगे,आशा रख पगली वो आयेंगे, हर
यह जिस्म तो किराये का घर है,एक दिन खाली करना पड़ेगा।सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँरूह को तन से
आंखें बेचैन हुई, दिल में बुझ गई आस हैजीवन मेरा संघर्ष बना, डूब रही पतवार हैखत मैंने लिखे, उनका ना