विविध भजन (Vividh Bhajan)

प्रेम का सागर लिखूं!

प्रेम का सागर लिखूं!या चेतना का चिंतन लिखूं!प्रीति की गागर लिखूं,या आत्मा का मंथन लिखूं!रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,चाहे जितना

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पिंजरा निकालना बाकी है

पिंजरा निकालना बाकी हैनिकाल लाया हूँ एकपिंजरे से मैं एक परिंदापरिंदे के तनहा दिल सेपिंजरा निकालना बाकी है परिंदे तेरा

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