लग रही आस करूं ब्रजवास, तलहटी गोवर्धन की मैं।
लग रही आस करूं ब्रजवास, तलहटी गोवर्धन की मैं।भजन करूं और ध्यान धरूं, छैंया कदमन की मैंसदा करूं सत्संग मंडली,संत
लग रही आस करूं ब्रजवास, तलहटी गोवर्धन की मैं।भजन करूं और ध्यान धरूं, छैंया कदमन की मैंसदा करूं सत्संग मंडली,संत

सब राह बंद पड़ जाती हैं,तब एक सहारा होता है,जब कोइ न संगी साथी हो,गोविंद हमारा होता है, जब टूटे

चेहरे चेहरे में नज़र आये चेहरा तेरा। एक दस्तक हुई दिल पर तेरे दीदार से,हो गए हम तेरे देखा जो

हे केशव, हे नाथ, मैं आपकी शरण मे हूँमैने जाने अनजाने मे , हाथ , पाँव , वाणी , शरीर

प्रेम का सागर लिखूं!या चेतना का चिंतन लिखूं!प्रीति की गागर लिखूं,या आत्मा का मंथन लिखूं!रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,चाहे जितना

आज कदंब की डाली झूले,श्रीराधा नंदकिशोरआहा…….!!कितना मनोरम दृश्य हैं… अरे छाई सावन की है बदरिया,और ठंडी पड़े फुहार,जब श्यामसुंदर बजाई

सावन मास में वृंदावन में बिहारी जी के फूल बंगले सजते हैं सब सावन के झूलों के गीत गा गा

मेरे मन के तार तार में, भगवान छुपे बैठे हैं, मेरी श्रद्धा और विश्वास में, भगवान छुपे बैठे हैं। ये

पिंजरा निकालना बाकी हैनिकाल लाया हूँ एकपिंजरे से मैं एक परिंदापरिंदे के तनहा दिल सेपिंजरा निकालना बाकी है परिंदे तेरा

हे कृष्णवदन हे मधुसूदन,घनश्याम कहे या मनमोहना। नन्दलाल, गोविन्द गोपाल तेरे दर्शन को तरस रहे नैना।श्यामल पंखी तेरा मोर मुकुट,