तन की चादर पुरानी हुई बाबरे
तन की चादर पुरानी हुई बाबरे अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा, कर यतन कर्म का दाग धोया नहीं
तन की चादर पुरानी हुई बाबरे अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा, कर यतन कर्म का दाग धोया नहीं
धुपां दा नहीं डर मैंनु , छावां मेरे नाल ने ॥ लोको मेरी माँ दिया, दुआवां मेरे नाल ने ॥
तर्ज- मरुधर में ज्योत जगाय गयो… शेर -चुरू नगर रे माहीने , बणीयो आपरो धाम भक्तो रा दुखड़ा दूर करे
माँ का दिल जो कभी न दुखाये गा तू , दो दुआ सब पायेगा तू सांचे में तन के ढाला
साडू मां का जाया, भक्ता के मनडे भाया, मालासेरी डूंगरी सु, देव देमली आया, सखिया मंगल गाया, फूला सा देव
कायर सके ना झेल फकीरी अलबेला रो खेल, अरे क़ायर सके ना झेल फ़कीरी अलबेला रो खेल, ज्यूँ रण माँय
चलो मन गंगा यमुना तीर गंगा यमुना निर्मल पानी शीतल होत शरीर, चलो मन गंगा यमुना तीर बंसी बजावत गावत
हे मनमोहनियाँ लख दाता साहनु कदो भुलावे गा, तेरा पीर निगाहें डेरा साहनु कदो भुलावे गा, साहनु कदो भुलावे गा
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता, जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता, क्या साधू
मरुधर में ज्योत जगाय गयो, बाबो धोली ध्वजा फहराय गयो, म्हारो साँवरियो बनवारी, बण्यो पचरंग पेचाधारी, भक्ता रे कारण, अजमल