
श्री चक्रपाणि शरण जी महाराज भाग – 8
गतांक से आगे – मैं मन्दिर का पुजारी था ….उस प्रसिद्ध मन्दिर के पुजारी ने कहा । था ? उन

गतांक से आगे – मैं मन्दिर का पुजारी था ….उस प्रसिद्ध मन्दिर के पुजारी ने कहा । था ? उन

गतांक से आगे- मानसी ध्यान सिद्ध था कोकिल साँई को …ये स्वयं मानसिक ध्यान में लीन रहते और अपने साधकों

।। जय श्रीहरि भक्ति कोई शास्त्र नहीं है- यात्रा है। भक्ति कोई सिद्धांत नहीं है- जीवन-रस है। भक्त का अर्थ

दुसायत मोहल्ला, श्रीबाँके बिहारी जी की गली में एक छोटा सा आश्रम है “सुखनिवास” । हरि जी ! भजन कीर्तन

गतांक से आगे- साँई ! नाम जाप की सही विधि क्या है ? सत्संग चल रहा था एक साधक ने

गतांक से आगे- बाबा ! बरसाने नही जाओगे ? एक छोटी सी कन्या ने कोकिल साँई से पूछ लिया था

गतांक से आगे- आहा ! तो ये है श्रीधाम वृन्दावन ! ब्रह्मा आदि बड़े बड़े देवता यहाँ के वृक्षादि के

दुसायत मोहल्ला, श्रीबाँके बिहारी जी की गली में एक छोटा सा आश्रम है “सुखनिवास” । हरि जी ! भजन कीर्तन

“समस्त घटनाक्रमों से बडी ही सुन्दर सीखने योग्य बात है कि” तू मेरे दरबार में झुकेगा तो मैं दिखूंगा, अथवा

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास मेंना मन्दिर