
स्वंयभू श्री राधारमण
स्वंयभू का मतलब होता है स्वंय से प्रकट हमारे श्री राधारमण देव जु स्वंय से प्रकट है इसलिये ये किसी

स्वंयभू का मतलब होता है स्वंय से प्रकट हमारे श्री राधारमण देव जु स्वंय से प्रकट है इसलिये ये किसी

प्रभु कितने दयालु हैं, कितने कृपालु हैं; और कितने करुणामय हैं, कि हर पल जीव पर अपने अहैतु की कृपा

गतांक से आगे- “भक्ति को गुप्त रखना चाहिये , मेरी भक्ति का प्रचार प्रसार हो ऐसी कामना निन्दनीय है”। इस

गतांक से आगे – मैं मन्दिर का पुजारी था ….उस प्रसिद्ध मन्दिर के पुजारी ने कहा । था ? उन

गतांक से आगे- मानसी ध्यान सिद्ध था कोकिल साँई को …ये स्वयं मानसिक ध्यान में लीन रहते और अपने साधकों

।। जय श्रीहरि भक्ति कोई शास्त्र नहीं है- यात्रा है। भक्ति कोई सिद्धांत नहीं है- जीवन-रस है। भक्त का अर्थ

दुसायत मोहल्ला, श्रीबाँके बिहारी जी की गली में एक छोटा सा आश्रम है “सुखनिवास” । हरि जी ! भजन कीर्तन

गतांक से आगे- साँई ! नाम जाप की सही विधि क्या है ? सत्संग चल रहा था एक साधक ने

गतांक से आगे- बाबा ! बरसाने नही जाओगे ? एक छोटी सी कन्या ने कोकिल साँई से पूछ लिया था

गतांक से आगे- आहा ! तो ये है श्रीधाम वृन्दावन ! ब्रह्मा आदि बड़े बड़े देवता यहाँ के वृक्षादि के