
अनन्य भक्ति ॥
बिना किसी व्यवधान के अनन्य भाव से मेरा चिंतन करना, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा करना, किसी भी प्राणी
बिना किसी व्यवधान के अनन्य भाव से मेरा चिंतन करना, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा करना, किसी भी प्राणी
प्रभु की भक्ति चाहे कितने कष्ट, कठिनाइयां, निन्दा तथा हानि सहन करने पर प्राप्त हो तो सस्ता सौदा समझो क्योंकि
भक्ति हम सबको दिखाकर करते हैं तब भक्ति के अन्दर दृढता को पकड़ नहीं सकते हैं। खुली वस्तु पर सबकी
|| श्री हरि: ||— :: x :: — — :: x : : —आज आपको बहुत लाभ की बात बतायी
|| श्री हरि: || गत पोस्ट से आगे……..यदि परमात्मा की प्राप्ति के लिये साधन होगा तो कंचन-कामिनी, मान-बड़ाई में अटकेंगे
सत्य को,सदैव तीन चरणों,से गुजरना होता है, उपहास, विरोध, अनंत स्वीकृतिपानी की एक बूंद गर्म तवे पर पड़े तो मिट
जब तक देहाभिमान है तब तक आत्मज्ञान नही हो सकता है और भगवान की भक्ति के विना देहाभिमान नष्ट नही
किसी ने मुझसे पुछा कि मेरी दिन चर्या ऐसी हैमुझे कभी-2 प्याज लहसुन का बना भी खानापडता है…..??क्या मैं उस
यमुनाजी अलौकिक निधि भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाली हैं । जो वैष्णव अष्टप्रहर यमुनाजी के नामों का उच्चारण करता
मोह में फंसकर आप परमात्मा जैसे प्यारे रिश्ते को कैसे भूल जाते हैं !संसार में अगर कोई भी रिश्ता सच्चा