
श्री बिहारिन दास – वृंदावन के रसिक संत
जन्म:
सूरध्वज ब्राह्मण वंशी राजा मित्रसेन बादशाह के प्रधान दीवान थे। वे महान् धर्मात्मा तथा उदार थे। अतुल सम्पत्ति होने पर

सूरध्वज ब्राह्मण वंशी राजा मित्रसेन बादशाह के प्रधान दीवान थे। वे महान् धर्मात्मा तथा उदार थे। अतुल सम्पत्ति होने पर

एक बार देवी सत्यभामा ने देवी रुक्मणि से पूछा कि दीदी क्या आपको मालुम है कि श्री कृष्ण जी बार

प्राचीन कथा के अनुसार एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया। तब समस्या उठी कि

जब भी भगत को भगवान् की याद आती है, कोई दुःख तकलीफ आती है, उसका करुण हृदय किसी संसार के

भगवान की कथा भागवत गीता और रामायण सुनना बहुत अच्छी है। कुछ बहनो के पास कथा सुनने का समय होता

भगवान् का नाम प्रेमपूर्वक लेता रहे, नेत्रोंसे जल झरता रहे, हृदय में स्नेह उमड़ता रहे, रोमांच होता रहे तो देखो,

राणा सांगा के पुत्र और अपने पति राजा भोजराज की मृत्यु के बाद जब संबन्धीयो के मीरा बाई पर अत्याचार

अनन्तता शब्द आपने ज़रूर सुना होगा। इसका अर्थ है, अपने आराध्य देव के सिवा, किसी और से किंचित् भी अपेक्षा

भक्ति आंखों से नही होती है,वरना सूरदासजी कभी नहीं कर पाते । भक्ति जाति देख के नही होतीवरना शबरी को

बहुत से ऐसे लोग जो माला आदि करने में भजन के साधन आदि करने में आलसी हैं वह प्राय यह