कलयुग केवल नाम अधारा
हमारा सौभाग्य है कि हम इस कलिकाल में धरती पर आये हैं। बात यह है की भारत भूमि पर हजारों
हमारा सौभाग्य है कि हम इस कलिकाल में धरती पर आये हैं। बात यह है की भारत भूमि पर हजारों
दो नैनों में भर प्रितम तुझेखुद ही खुद इतराती हूं रसना ना बोले ना सहीहर धड़कन में हरि को पाती
प्रगटे श्री हरिवंशचन्द्रवर , रसिकन के सरताज ॥घर-घर बन्दनवार साथिये , सम्पत्ति सार सिंगार ।नाचत गावत प्रेम विवश गति, प्रमुदित
भक्त भगवान् के मिलन की अपेक्षा भगवान् के भजन को अधिक प्रिय समझता है। भजन जब जीवन बन
हम मन्दिर जाते हैं मन्दिर के प्रागणं में शान्ति को महसूस करते हैं। हम शान्ति महसूस इसलिए करते हैं क्योंकि
जनकसुता जग जननि जानकी।अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ।जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥ भावार्थ- राजा जनकसुता,नारी शक्ति
परमात्मा हममें समाया हुआ है। यह कहने मात्र से बात नहीं बनती है। जब तक हम भगवान को भजेगें नहीं
ईश्वर एक है लेकिन पांचों ऊगली एक समान नहीं हैं किसी को मां दुर्गा मे ईश्वर दिखाई देते हैं तब
भक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान का बनना होता है। परमात्मा को पुकारते पुकारते समर्पण भाव जागृत हो जाता है।
जब तक “मै” है तब तक इच्छाएं हैं। ये शरीर मेरा मै भगवान का भक्त हू। भगवान् मेरे है। इन