।। गणपति अथर्वशीर्ष ।।
ॐ नमस्ते गणपतये।त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।। त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।त्वमेव केवलं धर्तासि।। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।। त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।ऋतं वच्मि।
ॐ नमस्ते गणपतये।त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।। त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।त्वमेव केवलं धर्तासि।। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।। त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।ऋतं वच्मि।
हे प्रभो,हे विश्वम्भर,हे दीनदयाल ,हे कृपा सिन्धु,हे सर्वशक्तिमान,आपको प्रणाम है प्रणाम है,प्रणाम है।हे प्रभु न मै योग जानता हुँ,न ज्ञान
प्रार्थना *हे जगत के आधार! हे ब्रह्मा!हे विष्णु! हे परमसत्ता शिव!आप हम पर अनंत-अनंत कृपा बरसाते हो! हम पात्र हो
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।१।। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।२।। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं
🕉 नम: शिवाय श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः!!ॐ श्री काशी विश्वनाथ विजयते🙏* सर्वविपदविमोक्षणम् विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।विश्वेशवन्द्या भवती
कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे वे अतिमानवीय हैं, दैवीय हैं किंतु फिर भी सर्वसुलभ है अपने
मुक्त पुरुष का किसी चीज से कोई आग्रह नहीं है, कि ऐसा ही होगा तो ही मैं सुखी रहूंगा। जैसा
प्रार्थना प्रेम का परिष्कार है। प्रार्थना की सुगंध है। प्रेम अगर फूल तो प्रार्थना फूल की सुवास। प्रेम थोड़ा स्थूल
एक बच्चा प्रतिदिन अपने दादा जी को सायंकालीन पूजा करते देखता था। बच्चा भी उनकी इस पूजा को देखकर अंदर
हनुमत तेरी बंदगी, करता सब संसार|राम नाम के जाप से,मिटते कष्ट हजार || ईश्वर वंदन भक्ति का, मिले हमें वरदान