स्वप्रके पापका भीषण प्रायश्चित्त
परम संत श्रीबाबा वैष्णवदासजी महाराज बड़े ही उच्चकोटिके श्रीरामभक्त संत थे। आपका सारा समय श्रीरामभजनमें व्यतीत होता था। जो भी
परम संत श्रीबाबा वैष्णवदासजी महाराज बड़े ही उच्चकोटिके श्रीरामभक्त संत थे। आपका सारा समय श्रीरामभजनमें व्यतीत होता था। जो भी
एक कारवाँ एक मरुभूमिको पार कर रहा था । रास्तेंमें पानीका सर्वथा अभाव हो गया । अन्तमें थोड़ा सा जल
लगभग चौबीस सौ वर्ष पहलेकी बात है। खुतन देशमें नदीका जल सूख जानेसे घोर अकाल पड़ गया। प्रजा भूखों मरने
‘हारिये न हिम्मत’ पंजाब केसरी महाराजा रणजीतसिंहको जब गुप्तचरोंसे समाचार मिला कि कबाइलियोंका दल राज्यकी सीमामें प्रवेश कर गया है
धर्मराज युधिष्ठिरके समीप कोई ब्राह्मण याचना करने आया। महाराज युधिष्ठिर उस समय राज्यके कार्य अत्यन्त व्यस्त थे। उन्होंने नम्रतापूर्वक ब्राह्मणसे
महेश मंडल जातिका था नमः शूद्र- चाण्डाल। दिनभर मजदूरी करके कुछ पैसे लाता, उसीसे अपना तथा अपनी स्त्री, पुत्र, कन्या-
सच्चा दान युधिष्ठिरका महान् अश्वमेध यज्ञ जब पूरा हुआ, उसी समय एक बड़ी उत्तम किंतु महान् आश्चर्यमें डालनेवाली घटना घटित
एक बार लियेन्स नगरके विद्वानोंने एक लेखके लिये पुरस्कारकी घोषणा की। उस समय नेपोलियन युवक थे। पुरस्कार प्रतियोगितामें उन्होंने भी
प्राज्ञाः पुरुषकारेषु वर्तन्ते दाक्ष्यमाश्रिताः ॥ विद्वान् कुशलताका आश्रय लेकर परिश्रममें ही लगे रहते हैं। The wise rely on skill in
सोचो, समझो, फिर करो संस्कृत-काव्यपरम्परामें भारवि नामके एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं। उनका ‘किरातार्जुनीयम्’ नामसे प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें महाभारतकी