निज जननी के एक कुमारा –
|| संशय निवारण || निज जननी के एक कुमारा –*मानस का प्रसंग -मानस प्रेमीॐ हिरण्यगर्भ:समवत्तरताग्रे,भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।। सदाचार
|| संशय निवारण || निज जननी के एक कुमारा –*मानस का प्रसंग -मानस प्रेमीॐ हिरण्यगर्भ:समवत्तरताग्रे,भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।। सदाचार
व्रजभूमि में जन्म लेने वाले जीवों में से, चाहे वे गोप गोपियों के रूप में हों अथवा जड़ चेतन पशु
सरयू जल साक्षात परम ब्रह्म है जो मोक्ष प्रदान करता है।रामजी के बालरूप के लिए धरती पर अवतरित हुई सरयू
हिरण्यकश्यपों के घर में भी,भक्त प्रह्लाद जन्म ले आते हैं.. निर्जीव स्तंभों के भीतर भी,जब भगवान प्रकट हो जाते हैं..
उद्धवजी को समझ नहीं आ रहा था कि व्रज को याद करते ही प्रभुकी आँखे क्यों बह निकलती है।जीव जब
।। श्री: कृपा ।। पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – आहार का सम्बन्ध न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य से है
एक बार भगवान अपने एक निर्धन भक्त से प्रसन्न होकर उसकी सहायता करने उसके घर साधु के वेश में पधारे।
श्री कृष्ण कृपा। सरजू अपनी पत्नी और मां-बाप के साथ एक गांव में रहता था। गांव में वह पिता के
व्यवसायिक कार्य से लगभग हर रोज दिल्ली जाना होता है। वापसी पर मुरथल के एक ढाबे पर रात्रिभोज हेतु रुकता
राधा केवल गोविन्द की सखी ही नहीं,उनकी प्रेयसी और उनकी प्राणवल्लभ भी हैं। कृष्ण के भीतर जो प्रेम आह्लाद और