रुपया मिला और भजन छूटा
एक धनवान् सेठकी कोठीके नीचे ही एक मोची बैठा करता था। वह जूते बनाता जाता था और भजनगाता जाता था।
एक धनवान् सेठकी कोठीके नीचे ही एक मोची बैठा करता था। वह जूते बनाता जाता था और भजनगाता जाता था।
भरोसा सुकरात मरने लगे, तो किसीने पूछा कि आप घबरा तो नहीं रहे हैं? सुकरातने कहा- ‘घबराना काहे का? जैसा
साधु इब्राहीम आदम घूमते-घामते किसी धनवान्के बगीचे में जा पहुँचे। उस धनी व्यक्तिने उन्हें कोई साधारण मजदूर समझकर कहा-‘तुझे यदि
एक ईश्वरविश्वासी, त्यागी महात्मा थे; वे किसीसे भीख नहीं माँगते, टोपी सीकर अपना गुजारा करते। एक टोपीकी कीमत सिर्फ दो
(12) अब चिन्ता किस बातकी स्वामी केशवानन्द, जिन्होंने शिक्षाका व्यापक प्रचार किया, राज्यसभाके सदस्य थे। एक दिन उनके एक सहकर्मीने
एक बार श्रमण महावीर कुम्मार ग्रामसे कुछ दूर संध्या-वेलामें ध्यानस्थ खड़े थे। एक गोपाल आया और ध्यानस्थ महावीरसे बोला- ‘रे
देवर्षि नारद व्रजभूमिमें भ्रमण कर रहे थे। श्रीकृष्णचन्द्रका अवतार हुआ नहीं था; किंतु होनेवाला ही था। घूमते हुए वे एक
घट-घटमें वह साईं रमता एक बार सन्त उमरको रास्तेमें एक गुलाम बकरियाँ चराते हुए दिखायी दिया। वे उसके पास गये
आनन्दरामायणकी तीन बोधकथाएँ पहली कथा – भेड़ोंका उपदेश एक समयकी बात है, माता कैकेयी श्रीरामके पास गयीं और उनसे बोलीं-
संत बहिणाबाई और उनके पति गंगाधरराव अपनी प्यारी कपिलाके साथ देहूमें तुकाराम महाराजके दर्शनार्थ आये थे। रास्तेमें एक दिन गंगाधररावको