
गुरुसेवा और उसका फल
महर्षि आयोदधौम्यके दूसरे शिष्य थे उपमन्यु । गुरुने उन्हें गायें चराने और उनकी रखवाली करनेका काम दे रखा था। ब्रह्मचर्याश्रमका

महर्षि आयोदधौम्यके दूसरे शिष्य थे उपमन्यु । गुरुने उन्हें गायें चराने और उनकी रखवाली करनेका काम दे रखा था। ब्रह्मचर्याश्रमका

एक भजनानन्दी साधु घूमते हुए आये और एक मन्दिरमें ठहर गये। मन्दिरके पुजारीने उनसे कहा *आप यहाँ जितने भी दिन

मर्यादापुरुषोत्तम विश्वसम्राट् श्रराघवेन्द्र अयोध्याके सिंहासनपर आसीन थे। सभी भाई चाहते थे कि प्रभुकी सेवाका कुछ अवसर उन्हें मिले; किंतु हनुमानजी

महात्मा हरिराम व्यासजी घर छोड़कर संवत् 1612 में ओरछासे वृन्दावन चले आये थे। उस समय इनकी अवस्था 45 वर्षकी थी।

संस्कार-सुरभित प्रेरक-प्रसंग प्रसन्नताका नुसख़ा एक संत किसी टीलेपर बैठे सूर्यास्त देख रहे थे। तभी एक सेठजी उनके पास आये। वे

किसी नरेशने मन्त्रीसे चार वस्तुएँ माँगीं-1- है | और है, 2- है और नहीं है, 3- नहीं है पर है,

कहते हैं कि सम्राट् अशोक से पहलेकी यह बात है – एक अत्यन्त दयालु तथा न्यायी राजा था। उसके राज्यमें

एक महात्मा थे। वे एकान्तमें देवीजीकी पूजा करते थे। एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे उनके मनमें आया

[महाभारत] आदत खराब नहीं करनी चाहिये प्राचीन समयमें एक सेठ-सेठानी थे, सुखी-सम्पन्न थे, पर अकेले ही थे। उन्होंने एक गाय

किसी वनमें खरनखर नामक एक सिंह रहता था। एक दिन उसे बड़ी भूख लगी। वह शिकारकी खोज में दिनभर इधर-उधर