किसीका दिल मत दुखाओ
किसीका दिल मत दुखाओ गर्मियोंके दिनोंमें एक शिष्यने अपने गुरुसे सप्ताह भरकी छुट्टी लेकर गाँव जानेका निर्णय किया। तब गाँव
किसीका दिल मत दुखाओ गर्मियोंके दिनोंमें एक शिष्यने अपने गुरुसे सप्ताह भरकी छुट्टी लेकर गाँव जानेका निर्णय किया। तब गाँव
एक महात्मा एक स्कूलके आगे रहा करते थे। एक दिन स्कूलके लड़कोंने उनको तंग करनेकी सोची। बस, एक लड़का आकर
सर प्रभाशङ्कर पट्टनी लंदनकी सहकपर पैदल निकले थे। भारतीय वेश, लंबी दाढ़ी और हाथमें मोटा सोटा लिये यह भारतीय बुड्डा
एक व्यापारीके दो पुत्र थे। एकका नाम था धर्मबुद्धि, दूसरेका दुष्टबुद्धि । वे दोनों एक बार व्यापार करने विदेश गये
प्रत्येक महान् पुरुषके यशका बीज उसके शुद्धाचरणमें ही समाया होता है। सन् 1896 सालकी घटना है, श्री ल0 रा0 पांगारकर
पण्डित चन्द्रशेखरजी दीर्घ कालतक न्याय, व्याकरण, धर्मशास्त्र, वेदान्त आदिका अध्ययन करके काशीसे घर लौटे थे। सहसा उनसे किसीने पूछ दिया-
संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता! हयग्रीव नामक दैत्यके एक पुत्र था, जो ‘उत्कल’ नामसे प्रसिद्ध हुआ। उसने समरांगणमें
लगभग ढाई हजार वर्ष पहलेकी बात है। चीनके महान् तत्त्वविवेचक महात्मा कनफ्युसियसने घोड़ागाड़ीसे वी नगरमें प्रवेश ही किया था कि
एक संत थे। विचित्र जीवन था उनका। वे हरेकसे अपनेको अधम समझते और हरेकको अपनेसे उत्तम । घूमते-फिरते एक दिन
कलकत्तेके कुछ कॉलेजके विद्यार्थी वहाँका ‘फोर्ट विलियम’ किला देखने गये थे। सहसा उनके एक साथीके शरीरमें पीड़ा होने लगी। उसने