श्रद्धा और विश्वास
. एक बार देवर्षि नारदजी की एक ब्राह्मण से मुलाकात हुई। ब्राह्मण ने उनसे जाते हुए पूछा–’मुनिवर अब आप कहाँ
. एक बार देवर्षि नारदजी की एक ब्राह्मण से मुलाकात हुई। ब्राह्मण ने उनसे जाते हुए पूछा–’मुनिवर अब आप कहाँ
.17वीं शताब्दी का समय था। हिन्दुस्तान में मुगल शासकों का अत्याचार, लूटमार बढ़ती ही जा रही थी। हिन्दुओं को जबरन
जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों
डॉक्टर प्राणजीवन मेहता गांधीजीके मित्रोंमेंसे थे। रेवाशंकर जगजीवनदास इनके भाई थे। पहले गांधीजी जब बम्बई जाते तब प्रायः इनके ही
एक बारकी बात है। एक संतके पास एक धनवान्ने रुपयोंकी थैली खोलकर उसे स्वीकार करनेकी प्रार्थना की। संतने उत्तर दिया
दो यात्री कहीं जा रहे थे। मार्गमें ही सूर्यास्त हो गया। रात्रि विश्रामके लिये वे पासके गाँवमें पहुँचे। वहाँके पटेलके
रामशास्त्री प्रभुणे पेशवाईके प्रमुख विचारपतिका काम कर रहे थे। साथ ही दानाध्यक्षका काम भी उन्हींके अधीन रहा। एक बार दक्षिणा
ऋषिकेशके जंगलमें पहले एक महात्मा रहते थे। उनका नाम था द्वारकादासजी वे बिलकुल दिगम्बर रहा करते थे। एक बार एक
परमात्माके विश्वासका ताना-बाना वृन्दावनमें एक जुलाहा था। एक कारीगरके रूपमें वह अत्यन्त भक्त और निष्ठावान् था। गाँवमें उसके समान अन्य
महाराज युधिष्ठिरने जब सुना कि श्रीकृष्णचन्द्रने अपनी लीलाका संवरण कर लिया है और यादव परस्परके कलहसे ही नष्ट हो चुके