सर्वस्वदान
‘भारतके सार्वभौम सम्राट महाराजाधिराज शिलादित्य – हर्षवर्धनकी जय हो वे चिरायु हो।’ सरस्वती पुत्रोंने प्रशस्ति गायी। गङ्गा-यमुनाके सङ्गमके ठीक सामने
‘भारतके सार्वभौम सम्राट महाराजाधिराज शिलादित्य – हर्षवर्धनकी जय हो वे चिरायु हो।’ सरस्वती पुत्रोंने प्रशस्ति गायी। गङ्गा-यमुनाके सङ्गमके ठीक सामने
छत्रपति शिवाजी महाराज समर्थ गुरु रामदासस्वामीके | भक्त थे। समर्थ भी सभी शिष्योंसे अधिक उन्हें प्यार करते। शिष्योंको भावना हुई
चार सौ वर्ष पहलेकी बात है। यूनानमें सरेनस नामके एक धनी व्यक्ति रहते थे। वे एक विशाल राज्यके अधिपति थे।
समझदारी किसी जंगलमें एक शेर रहता था। एक भेड़िया और एक लोमड़ी दोनों उसकी सेवामें उपस्थित रहते और उसके बचे-बचायेसे
परिवर्तन एक मूर्तिकार था, उसने बेटेको भी मूर्तिकला ही सिखायी। दोनों हाटमें जाते और अपनी-अपनी मूर्तियाँ बेचकर आते। बापकी मूर्ति
संसारे सुखिनो जीवा भवन्ति गुणग्राहकाः उत्तमास्ते हि विज्ञेयाः कृष्णवद् दन्तपश्यकाः ॥ एक बार देवराज इन्द्रने अपनी देवसभामें कहा कि इस
आत्मगौरवका आनन्द राजा भोजने नगरवासियोंको एक सार्वजनिक भोज दिया। लाखों लोग भाँति-भाँतिके मिष्टान्नों-पकवानोंको उदरस्थकर तृप्त हुए। अपनी उदारताकी चर्चा एवं
पिताने अपने नन्हे से पुत्रको कुछ पैसे देकर बाजार भेजा फल लानेके लिये। बच्चेने रास्तेमें देखा, कुछ लोग, जिनके बदनपर
दानका अनुपम उदाहरण एक दिन किसी बुढ़ियाने एक दरवाजेपर भीखके लिये याचना की। एक बालकने आकर बुढ़िया की दयनीय दशा
भारद्वाज नामका एक ब्राह्मण भगवान् बुद्धसे दीक्षा लेकर भिक्षु हो गया था। उसका एक सम्बन्धी इससे अत्यन्त क्षुब्ध होकर तथागतके