
धूलपर धूल डालनेसे क्या लाभ
राँका बाँका पति-पत्नी थे। बड़े भक्त और प्रभुविश्वासी थे। सर्वथा निःस्पृह थे। भगवान्ने उनकी परीक्षा करनेकी ठानी। एक दिन वे

राँका बाँका पति-पत्नी थे। बड़े भक्त और प्रभुविश्वासी थे। सर्वथा निःस्पृह थे। भगवान्ने उनकी परीक्षा करनेकी ठानी। एक दिन वे

कुछ सूफी बोध-कथाएँ सूफी फकीरोंकी जीवन-शैली और आराधनाका ढंग निराला रहा है और वैसा ही कुछ निरालापन उनके द्वारा अपने

सूर्याजी पंतका सुपुत्र नारायण बचपनसे ही विरक्त सा रहता, तप और ज्ञानार्जनमें ही उसका बचपन बीता। माँ पुत्रवधूका मुँह देखनेके

कहा जाता है कि जब लंका-विजयके लिये नल नील समुद्रपर सेतु बनानेमें लगे थे और अपार वानर भालुसमुदाय गिरिशिखर तथा

‘भारतके सार्वभौम सम्राट महाराजाधिराज शिलादित्य – हर्षवर्धनकी जय हो वे चिरायु हो।’ सरस्वती पुत्रोंने प्रशस्ति गायी। गङ्गा-यमुनाके सङ्गमके ठीक सामने

छत्रपति शिवाजी महाराज समर्थ गुरु रामदासस्वामीके | भक्त थे। समर्थ भी सभी शिष्योंसे अधिक उन्हें प्यार करते। शिष्योंको भावना हुई

चार सौ वर्ष पहलेकी बात है। यूनानमें सरेनस नामके एक धनी व्यक्ति रहते थे। वे एक विशाल राज्यके अधिपति थे।

समझदारी किसी जंगलमें एक शेर रहता था। एक भेड़िया और एक लोमड़ी दोनों उसकी सेवामें उपस्थित रहते और उसके बचे-बचायेसे

परिवर्तन एक मूर्तिकार था, उसने बेटेको भी मूर्तिकला ही सिखायी। दोनों हाटमें जाते और अपनी-अपनी मूर्तियाँ बेचकर आते। बापकी मूर्ति

संसारे सुखिनो जीवा भवन्ति गुणग्राहकाः उत्तमास्ते हि विज्ञेयाः कृष्णवद् दन्तपश्यकाः ॥ एक बार देवराज इन्द्रने अपनी देवसभामें कहा कि इस