
कामवश बिना विचारे प्रतिज्ञा करनेसे विपत्ति
बहुत पहले अयोध्यामें एक राजा रहते थे ऋतध्वज महाराज रुक्माङ्गद इनके ही पुत्र थे। ये बड़े प्रतापी और धर्मात्मा थे।
बहुत पहले अयोध्यामें एक राजा रहते थे ऋतध्वज महाराज रुक्माङ्गद इनके ही पुत्र थे। ये बड़े प्रतापी और धर्मात्मा थे।
शास्त्रीजीका कोट बात उन दिनोंकी है, जब लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय मन्त्री थे। सादगी और ईमानदारीमें शास्त्रीजी बेजोड़ थे। एक बारकी
चम्पा नगरीके व्यापारी माकंदीके पुत्र जिनपालित और जिनरक्षित बार-बार जलयानसे समुद्री यात्रा करते थे। समुद्री व्यापारमें उन्होंने पर्याप्त धन एकत्र
अमेरिकामें स्वातन्त्र्य-संग्रामके समय एक किलेबन्दी हो रही थी। कुछ सैनिकोंके द्वारा एक नायक उस कामको करा रहा था। सैनिक किलेकी
‘मन बड़ा चञ्चल होता है!’ श्रीनारायणदासजी बदरिकाश्रमसे मथुरा आये थे। वहाँ प्रभुके दर्शनार्थियोंका ताँता लगा रहता था। दर्शनार्थी अपने-अपने उपानह
रिश्तोंकी कमाई बात आठ-दस साल पहलेकी है। मैं अपने एक मित्रका पासपोर्ट बनवानेके लिये दिल्लीके पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन
‘नरहरि ! भगवान् विट्ठलनाथने प्रसन्न हो मुझे पुत्र | दिया। मैं आज उन्हें रत्नजटित कमरपट्टा चढ़ाने आया हूँ। पंढरपुरमें सिवा
मनका प्रभाव होता है मनपर काशीके सम्राट् अजितसेनकी सवारी शहरके बीचसे निकल रही थी। हजारों लोग सम्राट्के दर्शन कर रहे
प्राचीन कालमें राजा सर्वमित्रके शासनकालमें महात्मा बुद्ध बोधिसत्त्व-शरीरमें थे। उन्होंने विनम्रता, उदारता, क्षमाशीलता और दान तथा सदाचारके बलपर शक्रपद प्राप्त
एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न