सुविचार 57

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एक सेठ ने सत्संग में एक बार सुना की जिसने जैसे कर्म किये है उसे अपने कर्म भोगने पड़ेंगे यह सुनकर सेठ को क्रोध आया और वह संत जी के पास गया और बोला अगर कर्म भोगने पड़ेंगे तो सत्संग में आने का क्या फायदा है ? संत जी ने एक ईंट की तरफ इशारा करके कहा कि इस ईंट को छत पर ले जाकर मेरे सर पर फेंक दो यह सुनकर वह सेठ बोला संत जी इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा फिर संत ने उसे उसी ईंट के भार का रुई का गट्ठा बांध कर दिया और कहा इससे चोट लगेगी ? सेठ बोला नही तो संत ने कहा बेटा, सत्संग में आने से इंसान को अपने कर्मों का बोझ हल्का लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है सत्संग में आने से इंसान माया मोह के चक्कर में होने वाले पापों से भी बचा रहता है और सतगुरु की मौज में रहता हुआ एक दिन अपने निज घर सतलोक पहुँच जाता है जहाँ केवल सुख ही सुख है …!!

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