परोपकारीकी रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं

buddhism buddha statue

परोपकारीकी रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं

अमेरिका। एक नदीका व्यस्त किनारा। जागृति और हलका आवागमन! प्रातः कालका समय है। नदी किनारे लोग स्नानके लिये आ-जा रहे हैं। कुछ सैर करते-करते किनारे पर बैठकर जलका आनन्द ले रहे हैं और उठती हुई लहरों तथा उछलती हुई मछलियोंकी किलोलें देख रहे हैं। वातावरणमें शान्ति है, हवामें मस्ती और ताजगी।
‘बचाओ, अरे कोई मेरे बच्चेको बचाओ।’ एक ओरसे कातर स्वीका करुण स्वर सुन पड़ा। सबका ध्यान उधर खिंच गया। कोई माता रो-रोकर नदीकी ओर इशारा कर रही थी। दुर्भाग्यसे उसका बच्चा नदीमें गिर गया था और जलकी सतहपर ‘अब डूबा, अब डूबा ! कर रहा था।
माताकी आर्त पुकार अबतक उस नदीपर चारों ओर फैल गयी थी। लोग उसे न संभाल सके। वे भागे भागे दुर्घटना स्थलपर आ इकट्ठे हुए। अब वहाँ भीड़ एकत्रित हो चुकी थी। सबमें घबराहट थी।
‘बचाओ, हाय, मेरा लाल डूब रहा है। हाय, हाय, वह मर जायगा। अरे, कोई तो हिम्मत करो। बच्चेको पानीसे निकालो।’ माता करुण चीत्कार कर रही थी।
अनेक लोग खड़े तमाशा-सा देख रहे थे; किंतु किसीको भी नदीमें कूदकर बच्चेको बचा लानेका साहस न था। सबको अपनी जिंदगी प्यारी थी। कोई क्यों
किसीके बच्चेके लिये मरे। कोई डूबता है, तो डूबे ! ‘
बचाओ, हाय, वह डूबनेको है। रक्षा करो, बचाओ।’ तभी एक अठारह उन्नीस वर्षका युवक भीड़ चीरता हुआ वायुवेगसे नदीके तटतक पहुँचा और धम्मसे बालकके पास निशाना बाँधकर कूद पड़ा। सब आश्चर्यमें थे। यह क्या हुआ?”
क्या इसे उस नदीके विशाल प्रवाहका कोई भय नहीं? क्या इसे अपने जीवनका मोह नहीं? क्या यह जल्दबाजी और तीव्र आवेगोंका शिकार है ? कौन जाने सरिताका प्रवाह ही इसे निगल ले !
अब सब उस युवकका तैरना देख रहे हैं। कई बार वह युवक भँवरमें फँसा जान पड़ता है। अनेक बार उसकी नाक और मुँहमें बुरी तरह पानी भरता दिखायी देता है। कई बार तो वह कठोर छिपी हुई चट्टानोंसे टकराते टकराते कठिनाईसे बचता है। वह डुबकी लगाकर बच्चेको खोज रहा है।
उसे बच्चेको ढूँढ़ते-ढूँढ़ते काफी विलम्ब हो गया। है। सबके उत्सुक नेत्र घटना स्थलपर युवकको खोज रहे हैं। वह जलके भीतरसे नहीं निकला है। कहाँ गया वह ? कहीं उसकी जल-समाधि तो नहीं हो गयी ? ऐसा दीखता है कि उसके लौटनेकी कोई आशा नहीं है। शायद वह सदा-सर्वदाके लिये दुनियासे चला गया। किंतु कुछ क्षणके बाद !
उसके सिरके काले बाल जलके ऊपर थोड़े-थोड़े नजर आते हैं। लीजिये, वह अब सतहके ऊपर तैरता दिखायी दे रहा है। पाँव हिलते हुए स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं। वह किनारेकी ओर आ रहा है।
अरे! उसके हाथोंमें मूर्च्छित बच्चा भी है। थोड़ी ही देर बाद सब देखते हैं कि युवक मूर्च्छित बच्चेको उसकी रोती हुई माताके सामने रख रहा है।
‘यह डरके मारे बेहोश है। कुछ पानी पी गया है। अभी ठीक हो जायगा। सँभालिये, आपका पुत्र बच गया है।’ माता कृतज्ञताभरे नेत्रोंसे युवकको निहार रही है। बच्चा अस्पताल ले जाया गया और भाग्यसे उसकी जान बच गयी! वह युवकके साहस और उद्योगसे मौतके मुँहमें जाकर भी लौट आया। किसे पता था कि बच्चा इस दुर्घटनासे बच सकेगा ? ईश्वरकी कृपा असीम है।
दूसरोंके लिये अपने प्राणोंको न्योछावर करनेवाले इस युवकको क्या आप जानते हैं ?
वह था अमेरिका-जैसे विशाल देशका भूतपूर्व
प्रेसीडेण्ट जार्ज वाशिंगटन !
परोपकारी और दूसरोंका दुःख-दर्द दूर करनेवाले व्यक्तियोंकी रक्षा स्वयं परमात्मा करता है। अतः होकर सदा-सर्वदा लोक-कल्याणके उदात्त कार्योंमें संलग्न रहना चाहिये। इसीमें मनुष्यका बड़प्पन निहित है। [ डॉ0 श्रीरामचरणजी महेन्द्र ]

परोपकारीकी रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं
अमेरिका। एक नदीका व्यस्त किनारा। जागृति और हलका आवागमन! प्रातः कालका समय है। नदी किनारे लोग स्नानके लिये आ-जा रहे हैं। कुछ सैर करते-करते किनारे पर बैठकर जलका आनन्द ले रहे हैं और उठती हुई लहरों तथा उछलती हुई मछलियोंकी किलोलें देख रहे हैं। वातावरणमें शान्ति है, हवामें मस्ती और ताजगी।
‘बचाओ, अरे कोई मेरे बच्चेको बचाओ।’ एक ओरसे कातर स्वीका करुण स्वर सुन पड़ा। सबका ध्यान उधर खिंच गया। कोई माता रो-रोकर नदीकी ओर इशारा कर रही थी। दुर्भाग्यसे उसका बच्चा नदीमें गिर गया था और जलकी सतहपर ‘अब डूबा, अब डूबा ! कर रहा था।
माताकी आर्त पुकार अबतक उस नदीपर चारों ओर फैल गयी थी। लोग उसे न संभाल सके। वे भागे भागे दुर्घटना स्थलपर आ इकट्ठे हुए। अब वहाँ भीड़ एकत्रित हो चुकी थी। सबमें घबराहट थी।
‘बचाओ, हाय, मेरा लाल डूब रहा है। हाय, हाय, वह मर जायगा। अरे, कोई तो हिम्मत करो। बच्चेको पानीसे निकालो।’ माता करुण चीत्कार कर रही थी।
अनेक लोग खड़े तमाशा-सा देख रहे थे; किंतु किसीको भी नदीमें कूदकर बच्चेको बचा लानेका साहस न था। सबको अपनी जिंदगी प्यारी थी। कोई क्यों
किसीके बच्चेके लिये मरे। कोई डूबता है, तो डूबे ! ‘
बचाओ, हाय, वह डूबनेको है। रक्षा करो, बचाओ।’ तभी एक अठारह उन्नीस वर्षका युवक भीड़ चीरता हुआ वायुवेगसे नदीके तटतक पहुँचा और धम्मसे बालकके पास निशाना बाँधकर कूद पड़ा। सब आश्चर्यमें थे। यह क्या हुआ?”
क्या इसे उस नदीके विशाल प्रवाहका कोई भय नहीं? क्या इसे अपने जीवनका मोह नहीं? क्या यह जल्दबाजी और तीव्र आवेगोंका शिकार है ? कौन जाने सरिताका प्रवाह ही इसे निगल ले !
अब सब उस युवकका तैरना देख रहे हैं। कई बार वह युवक भँवरमें फँसा जान पड़ता है। अनेक बार उसकी नाक और मुँहमें बुरी तरह पानी भरता दिखायी देता है। कई बार तो वह कठोर छिपी हुई चट्टानोंसे टकराते टकराते कठिनाईसे बचता है। वह डुबकी लगाकर बच्चेको खोज रहा है।
उसे बच्चेको ढूँढ़ते-ढूँढ़ते काफी विलम्ब हो गया। है। सबके उत्सुक नेत्र घटना स्थलपर युवकको खोज रहे हैं। वह जलके भीतरसे नहीं निकला है। कहाँ गया वह ? कहीं उसकी जल-समाधि तो नहीं हो गयी ? ऐसा दीखता है कि उसके लौटनेकी कोई आशा नहीं है। शायद वह सदा-सर्वदाके लिये दुनियासे चला गया। किंतु कुछ क्षणके बाद !
उसके सिरके काले बाल जलके ऊपर थोड़े-थोड़े नजर आते हैं। लीजिये, वह अब सतहके ऊपर तैरता दिखायी दे रहा है। पाँव हिलते हुए स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं। वह किनारेकी ओर आ रहा है।
अरे! उसके हाथोंमें मूर्च्छित बच्चा भी है। थोड़ी ही देर बाद सब देखते हैं कि युवक मूर्च्छित बच्चेको उसकी रोती हुई माताके सामने रख रहा है।
‘यह डरके मारे बेहोश है। कुछ पानी पी गया है। अभी ठीक हो जायगा। सँभालिये, आपका पुत्र बच गया है।’ माता कृतज्ञताभरे नेत्रोंसे युवकको निहार रही है। बच्चा अस्पताल ले जाया गया और भाग्यसे उसकी जान बच गयी! वह युवकके साहस और उद्योगसे मौतके मुँहमें जाकर भी लौट आया। किसे पता था कि बच्चा इस दुर्घटनासे बच सकेगा ? ईश्वरकी कृपा असीम है।
दूसरोंके लिये अपने प्राणोंको न्योछावर करनेवाले इस युवकको क्या आप जानते हैं ?
वह था अमेरिका-जैसे विशाल देशका भूतपूर्व
प्रेसीडेण्ट जार्ज वाशिंगटन !
परोपकारी और दूसरोंका दुःख-दर्द दूर करनेवाले व्यक्तियोंकी रक्षा स्वयं परमात्मा करता है। अतः होकर सदा-सर्वदा लोक-कल्याणके उदात्त कार्योंमें संलग्न रहना चाहिये। इसीमें मनुष्यका बड़प्पन निहित है। [ डॉ0 श्रीरामचरणजी महेन्द्र ]

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