संस्कार और सभ्यता 🙏

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वासु भाई और वीणा बेन* गुजरात के एक शहर में रहते हैं; आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे
3 दिन का अवकाश था; पेशे से चिकित्सक हैं
लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे। परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं
आज उनका इंदौर- उज्जैन जाने का विचार था
दोनों जब साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ था और बढ़ते-बढ़ते वृक्ष बना
दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया
2 साल हो गए,अभी संतान कोई है नहीं, इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते हैं
विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया
वीणाबेन स्त्री-रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मैडिसिन हैं
इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला
यात्रा पर रवाना हुए, आकाश में बादल घुमड़ रहे थे
मध्य-प्रदेश की सीमा लगभग 200 कि मी दूर थी; बारिश होने लगी थी
म.प्र. सीमा से 40 कि.मी. पहले छोटा शहर पार करने में समय लगा
कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया
भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था : परंतु चाय का समय हो गया था
उस छोटे शहर से ४-५ कि.मी. आगे निकले
सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया;जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे
उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है
वासुभाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए, कोई नहीं था
आवाज लगाई ! अंदर से एक महिला निकल कर आई
उसने पूछा, “क्या चाहिए भाई ?”
वासुभाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए और “कहा बेन !! दो कप चाय बना देना ; थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है”
पैकेट लेकर गाड़ी में गए ; दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया ; चाय अभी तक आई नहीं थी
दोनों कार से निकल कर दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे
वासुभाई ने फिर आवाज लगाई
थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई और बोली, “भाई! बाड़े में तुलसी लेने गई थी, तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई ; अब चाय बन रही है”
थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप लेकर वह गरमा गरम चाय लाई
मैले कप देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए और कुछ बोलना चाहते थे ; परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उन्हें रोक दिया
चाय के कप उठाए; उनमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी
दोनों ने चाय का एक सिप लिया
ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी : उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई
उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा, कितने पैसे ?
महिला ने कहा, “बीस रुपये”
वासुभाई ने सौ का नोट दिया
महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है; 20 ₹ छुट्टा दे दो
वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया
महिला ने सौ का नोट वापस किया
वासुभाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं !
महिला बोली, “यह पैसे उसी के हैं ; चाय के नहीं”
अरे! चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ?
जवाब मिला हम चाय नहीं बेंचते हैं यह होटल नहीं है
“फिर आपने चाय क्यों बना दी ?”
“अतिथि आए !! आपने चाय मांगी, हमारे पास दूध भी नहीं था ; यह बच्चे के लिए दूध रखा था, परंतु आपको मना कैसे करते; इसलिए इसके दूध की चाय बना दी”
अब बच्चे को क्या पिलाओगे
“एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा”
इसके पापा बीमार हैं; वह शहर जाकर दूध ले आते, पर उनको कल से बुखार है; आज अगर ठीक हो गऐ तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे”
वासुभाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये
इस महिला ने होटल न होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ; अतिथि रूप में आकर
संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे है
उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं : आपके पति कहां हैं
महिला उनको भीतर ले गई ; अंदर गरीबी पसरी हुई थी
एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे ; बहुत दुबले पतले थे
वासुभाई ने जाकर उनके माथे पर हाथ रखा ; माथा और हाथ गर्म हो रहे थे और कांप भी रहे थे
वासुभाई वापस गाड़ी में गए; दवाई का अपना बैग लेकर आए; उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर खिलाई और कहा:- “इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा”
मैं पीछे शहर में जा कर इंजेक्शन और दवाई की बोतल ले आता हूं
वीणाबेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने को कहा
गाड़ी लेकर गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन ले कर आए और साथ में दूध की थैलियां भी लेकर आये
मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं बैठे रहे
एक बार और तुलसी अदरक की चायबनी
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुआ तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े
3 दिन इंदौर-उज्जैन में रहकर, जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने और दूध की थैलियां लेकर आए
वापस उस दुकान के सामने रुके;
महिला को आवाज लगाई तो दोनों बाहर निकले और उनको देखकर बहुत खुश हुए
उन्होंने कहा कि आपकी दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल ठीक हो गये
वासुभाई ने बच्चे को खिलोने दिए ; दूध के पैकेट दिए
फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपना पन स्थापित हुआ।
वासुभाई ने अपना एड्रेस कार्ड देकर कहा, “जब कभी उधर आना हो तो जरूर मिलना
और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये
शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी; फिर एक फैसला लिया :
अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि अब आगे से जो भी मरीज आयें: केवल उनका नाम लिखना, फीस नहीं लेना ; फीस मैं खुद लूंगा
और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया
केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते
धीरे-धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई
दूसरे डाक्टरों ने सुना तो उन्हें लगा कि इससे तो हमारी प्रैक्टिस भी कम हो जाएगी और लोग हमारी निंदा करेंगे
उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा :
एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. वासुभाई से मिलने आए और उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
तब वासुभाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी पुलकित हो गया
वासुभाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मैरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा हूँ ; एम.बी.बी.एस. में भी, एम.डी. में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना परंतु सभ्यता, संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है, वह मुझसे आगे निकल गयी : तो मैं अब पीछे कैसे रहूंँ?
इसलिए मैं :
अतिथि-सेवा और मानव-सेवा में भी गोल्ड मैडलिस्ट बनूंगा
इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की है
और मैं यह कहता हूँ कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का ही है
सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा-भावना से काम करें
गरीबों की निशुल्क सेवा करें, उपचार करें
यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं है
परमात्मा ने हमें मानव-सेवा का अवसर प्रदान किया है
एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासुभाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर चिकित्सा-सेवा करुंगा

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