मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग-60

विधाता ने सोच समझ करके जोड़ी मिलाई है, पर आकाश कुसुम कैसे?’‘इसलिए कि वह धरा के सब फूलों से सुंदर

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मीरा चरित
भाग- 58

‘गणगौर पूजने का मुहूर्त आ गया है बावजी हुकुम, रात को ही भाभी म्हाँरा को कहलवा दिया था।सबेरे नर्मदा जीजी

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मीरा चरित भाग- 59

मीरा की इस बात पर दोनों की सम्मिलित हँसी सुनकर बाहर बैठी दासियाँ भी मुस्करा पड़ी।‘भीतर का अथवा बाहर का?’-

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मीरा चरित भाग- 57

मेड़तणीजी के महल से रोने कूटने की ध्वनि नहीं सुनाई दी तो महारानी ने दासी के द्वारा समाचार यह सोचकर

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मीरा चरित
भाग- 56

आप स्वयं देखते हैं कि वे नियम से अखाड़े में उतरते हैं, शस्त्राभ्यास करते हैं, आखेट पर जाते हैं, न्यायासन

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मीरा चरित भाग- 55

हिंडोले पर सुंदर सुकोमल बिछौना बिछाया।तब तक उनकी स्वामिनी अपने हृदयधन का हाथ थामें आ गईं। दोनों के विराजित होने

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मीरा चरित भाग-52

‘आप कभी याद करने की कृपा नहीं करतीं हैं भाभीसा।बहुत इच्छा रहती है आपके दर्शनों की, किंतु जिससे पूछो वही

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मीरा चरित भाग- 53

अब तो कभी कभार ही वहाँ महलों में पधारते हैं।बाई हुकुम कुछ खाने को दें भी तो फरमाते हैं कि

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मीरा चरित भाग- 50

बिना श्रद्धा और विश्वास के कुछ हाथ नहीं लगता, क्योंकि कार्य अपने कारण को नहीं जान सकता।बेटा कैसे जान सकता

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