मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग- 68

विक्रमादित्य का आक्रोश…… राणा विक्रमादित्य ने एक दिन बड़ी बहन उदयकुँवर बाईसा को बुला कहा- ‘जीजा ! भाभी म्हाँरा को

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मीरा चरित भाग- 66

भोजराज की आँखों के चारो ओर गड्ढे पड़ गये थे।नाक ऊँची निकल आई थी।नाहर से खाली हाथ लड़ने वाला उनका

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मीरा चरित भाग- 65

दाझया ऊपर लूण लगायो हिवड़े करवत सारयो।मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरि चरणा चित धारयो। ‘म्हें थारो कई बिगाड़यो रे

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मीरा चरित
भाग- 64

दुष्टों का विनाश करना और साधुओं का परित्राण करना तो उनके अवतार काल का गौण कार्य होता है।जिसके भ्रू- संकेत

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मीरा चरित भाग- 63

किसी को अप्रसन्न भी करना नहीं चाहती…. किंतु….. ‘ – निःश्वास छोड़ कर उन्होंने बात पूरी की- ‘अपने चाहने से

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मीरा चरित भाग-62

‘दृढ़ संकल्प हो तो मनुष्य के लिए दुर्लभ क्या है?’- मीरा ने कहा।‘मेरी इच्छा से तो कुछ होता जाता नहीं

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मीरा चरित भाग- 61

विरहावेश में उसे स्वयं का भी ज्ञान न रहता।पुस्तकों के पृष्ठ-पृष्ठ-में, वस्त्रों के कोने कोने में, धूल के कण कण

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मीरा चरित भाग-60

विधाता ने सोच समझ करके जोड़ी मिलाई है, पर आकाश कुसुम कैसे?’‘इसलिए कि वह धरा के सब फूलों से सुंदर

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मीरा चरित
भाग- 58

‘गणगौर पूजने का मुहूर्त आ गया है बावजी हुकुम, रात को ही भाभी म्हाँरा को कहलवा दिया था।सबेरे नर्मदा जीजी

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मीरा चरित भाग- 59

मीरा की इस बात पर दोनों की सम्मिलित हँसी सुनकर बाहर बैठी दासियाँ भी मुस्करा पड़ी।‘भीतर का अथवा बाहर का?’-

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